Sunday, 29 October 2017

WBHS XII Cost: सामग्री लागत (Cost of Material)


सामग्री लागत यानी कॉस्ट ऑफ मटेरियल 


¶ सामग्री बही (स्टोर्स लेजर) और जारी किए गए सामग्री ( मटेरियल) के मूल्यांकन (प्राइसिंग) की विधि [Stores Ledger and methods of pricing the material issues] 

 स्टोर्स लेजर यानी सामग्री बही एक ऐसा विवरण (statement/description) अभिलेख (record) है जिसमें खरीदे गए सामग्री, जारी (issue) किए गए सामग्री, और सामग्री के शेष-अंक (balance) और उनके मूल्य (value) को व्यवस्थित रुप से तारीख के क्रम में लिपिबद्ध किया जाता है. 

क्रय किए गए सामग्रियों का क्रय मूल्य आसानी से पता रहता है. लेकिन विभिन्न समय पर खरीदे गए एक ही सामग्री के भिन्न-भिन्न दर (rate) हो सकते हैं. इसलिए उंहें किसी जॉब या वर्क आर्डर के लिए जारी करते समय उनके दर के निर्धारण में समस्या आ सकती है. इसलिए किसी उचित विधि (जैसे LIFO, FIFO, इत्यादि) के आधार पर जारी किए गए सामग्री के दर का निर्धारण किया जाता है. और इस प्रकार शेष बची सामग्री (closing stock) का मूल्य और वर्तमान जॉब या वर्क आर्डर के कुल सामग्री लागत (total material cost) और कुल लागत  के निर्धारण में  स्टोर्स  लेजर का एक महत्वपूर्ण स्थान है. 

¶ जारी किए गए सामग्री के दर निर्धारण की कुछ महत्वपूर्ण विधियां निम्नलिखित हैं... 

• FIFO ( first in first out) 
• LIFO ( last in first out) 
• Simple average method 
• Weighted average method 

I. FIFO (पहले आया: पहले गया) 

इस विधि के अनुसार यह माना जाता है कि जो सामग्री पहले खरीदी गई थी उत्पादन के लिए उसे ही सर्वप्रथम जारी किया जाता है. इस प्रकार सबसे अंत में खरीदी गई सामग्री शेष बची रह जाती है. और क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य सबसे अंत में खरीदी गई सामग्री के दर के अनुसार निर्धारित होता है. 
वास्तव में ऐसे सामग्री जो समय के साथ खराब हो सकते हैं उन्हें उत्पादन में पहले उपयोग किया जाता है. जिससे सबसे अंत में खरीदे गए सामग्री ही शेष बचे और पुरानी सामग्री का उपयोग हो जाए. लेकिन यह मान्यता कई प्रकार के उद्योगों में सही नहीं भी हो सकती है. केवल सामग्री जारी करने की दर के निर्धारण के लिए ऐसी कल्पना की जाती है. 

उदाहरण के लिए अगर 5, 10 और 15 जनवरी 2017 को 100 kg, 200 kg, और 300 kg सामग्री क्रमशः ₹1, ₹2, और ₹3  की दर से खरीदी गई हो,... 

और अगर 20 जनवरी को 250 kg सामग्री उत्पादन के लिए जारी करेगी गई हो, तो इस विधि के अनुसार ...

जारी किए गए सामग्री का मूल्य ₹400 (=100 X ₹1 + 150 X ₹2)

और

क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य ₹1,000 (=50 X ₹2 + 300 X ₹3) होगा. 

• इस विधि का लाभ (advantages) 

1. इस विधि को समझना और उपयोग करना बहुत आसान है.
2. यह विधि वास्तविकता पर आधारित है क्योंकि जिस क्रम में सामग्री खरीदी जाती है उसी क्रम में उनका उपयोग उत्पादन के लिए किया जाता है. 
3. इस विधि की मान्यता के अनुसार सबसे अंत में खरीदे गए सामग्री शेष बच जाते हैं और उनका मूल्य निर्धारण वर्तमान  बाजार मूल्यों के दर पर किया जाता है. 
4. जब सामग्री का बाजार मूल्य घटता है, तो ऐसी अवस्था में यह विधि अच्छे परिणाम देता है.
5. यह विधि विशेष रूप से धीमी गति से उपयोग होने वाले भारी सामग्री हैं जिनका इकाई दर बहुत अधिक होता है.
6. जब क्रय और जारी की घटनाएं बहुत अधिक नहीं होती और सामग्री के मूल्य बहुत अधिक परिवर्तित नहीं होते हैं, तो यह विधि कारगर साबित होता है. 


• इस विधि की बुराइयां/कमियां/खामियां (limitations) 

1. जिस दर पर सामग्री जारी की गई है वह दर वर्तमान आर्थिक मूल्य नहीं भी दर्शा सकता है.
2. जब खरीदे गए सामग्री की मात्रा में बहुत अधिक अंतर होता है, तो यह विधि क्लोजिंग स्टॉक और तैयार सामग्री  (फिनिश्ड स्टॉक) का सटीक मूल्यांकन नहीं कर पाएगी.
3. मूल्य वृद्धि की अवस्था में क्लोजिंग स्टॉक और निर्मित सामग्री या वस्तु का मूल्य वर्तमान मूल्य से बहुत अलग/कम होगा.
4. अगर बहुत कम मात्रा में सामग्रियों को खरीद कर लाया जाता है और इनका क्रय-दर अगर भिन्न हो, तो एक साथ बहुत सारे दरों का हिसाब रखना पड़ेगा. जो अनावश्यक समय और ऊर्जा को खर्च करेगा.
5. भिन्न भिन्न धर्म के उपयोग के कारण विभिन्न सामग्रियों के उत्पादन लागत या किसी कार्य को पूरा करने की लागत का तुलनात्मक अध्ययन करना उचित (तर्कसंगत) नहीं होगा.

II. LIFO (अंत में आया: पहले गया) 

सामग्री जारी करने के दर के निर्धारण के लिए इस विधि की यह मान्यता है कि सबसे अधिक में खरीदी गई सामग्री को उत्पादन या उपयोग के लिए सबसे पहले जारी किया जाता है और इस प्रकार सबसे पहले खरीदी गई सामग्री या तो सबसे अंत में उपयोग में लाई जाती है या क्लोज क्लोजिंग स्टॉक के रूप में बच जाती है. इस प्रकार क्लोजिंग स्टॉक का मूल्यांकन वर्तमान बाजार दर की अपेक्षा पुरानी दरों पर होती है.

FIFO विधि मैं वर्णित उदाहरण के अनुसार अगर 250 किलो के बजाय 350 किलो सामग्री जारी की जाए, तो...

जारी किए गए सामग्री का मूल्य ₹1,000 (=300 X ₹3 + 50 X ₹2)
 और
क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य 400 (=100X₹1+150X₹2) होगा.

• इस विधि से लाभ (advantages)

1. यह विधि को समझना और व्यवहार करना बहुत आसान है.
2. जब बाजार दर बहुत अधिक परिवर्तनशील ना हो और क्रय लेनदेन की संख्या बहुत अधिक ना हो, तब यह विधि बहुत व्यवहारिक सिद्ध होगी.
3. बहुत कम मात्रा में उपयोग होने वाले बहुत भारी सामग्रियों जिनका इकाई क्रय दर (unit price) बहुत अधिक होता है ऐसे सामग्रियों के लिए यह विधि उपयुक्त है.
4. सामग्रियों के जारी करने का दर वर्तमान बाजार दर के  समान होगा.
5. जब बाजार मूल्य में निरंतर वृद्धि होती रहती है तब निर्मित सामग्री और का मूल्यांकन वर्तमान बाजार मूल्य के बराबर होगा; और क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य ऐतिहासिक होने के कारण बाजार मूल्य से बहुत कम होगा जो कि एकाउंटेंसी की नीति लागत और बाजार मूल्य में जो कम हो (cost or market price whichever is lower) से मेल खाती है.

• इस विधि से हानि/खामियां (limitations) 

1. अगर अल्पकाल में ही किसी सामग्री को कई बार विभिन्न दरों पर खरीदा जाए, तो कई दरों को एक साथ हिसाब में रखना कठिन होगा.
2. एक ही सामग्री के लिए विभिन्न क्रय दर  का उपयोग होने के कारण दो निर्मित सामग्रियों या दो कार्यों में उचित तुलना संभव नहीं होगा.
3. क्लोजिंग स्टॉक का मूल्यांकन ऐतिहासिक लागत (हिस्टोरिकल कॉस्ट) पर होगा जो वास्तविक वर्तमान बाजार मूल्य से बहुत कम होगा.
4. जब सामग्री के बाजार क्रय दरों में क्रमशः कमी होती रहेगी, तब निर्मित सामग्री का मूल्य वास्तविकता से कम होगा और क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य वर्तमान बाजार मूल्य से अधिक होगा.

• LIFO और  FIFO विधियों की तुलना (difference between LIFO and FIFO methods) 

1. LIFO विधि में सबसे अंत में खरीदी गई सामग्री सबसे पहले उत्पादन के लिए जारी की जाती है.

FIFO विधि में सबसे पहले खरीदी गई सामग्रियां उत्पादन के लिए सबसे पहले जारी की जाती है.

2. जब बाजार में सामग्री के क्रय- दर यानी मूल्य में लगातार कमी हो, तो ऐसी अवस्था में LIFO विधि के अनुसार कुल उत्पादन लागत  कम होगा; और FIFO विधि के अनुसार कुल उत्पादन लागत अधिक होगा.

3. सामग्री के बाजार क्रय दर यानी मूल्य में लगातार वृद्धि होने की अवस्था में LIFO विधि के अनुसार उत्पादन लागत अधिक होगा; और FIFO विधि के अनुसार उत्पादन लागत कम होगा.

4. सामग्री के बाजार क्रय दर यानी मूल्य में लगातार कमी की अवस्था में LIFO विधि के अनुसार क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य अधिक होगा; और FIFO विधि के अनुसार क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य कम होगा.

5. सामग्री के बाजार क्रय दर यानी मूल्य में लगातार वृद्धि की अवस्था में LIFO विधि के अनुसार क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य कम  होगा; और FIFO विधि के अनुसार क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य अधिक होगा.

6. LIFO विधि के उपयोग से वर्तमान लागत (current cost) और वर्तमान आय (current revenue) का मेल (matching) कराया जाता है. और FIFO विधि के उपयोग से इन्वेंटरी यानी वस्तु सूची का मूल्यांकन वर्तमान लागत के अनुरूप होता है.

7. LIFO विधि के उपयोग से क्लोजिंग स्टॉक का मूल्यांकन ऐतिहासिक मूल्यों पर होता है. क्लोजिंग स्टॉक एक चालू संपत्ति (current assets) है. इसलिए कार्यकारी पूंजी (वर्किंग कैपिटल) का मूल्यांकन गलत हो जाता है.
 इसके विपरीत FIFO विधि में क्लोजिंग स्टॉक का मूल्यांकन वर्तमान मूल्यों पर होता है. जिससे कार्यकारी पूंजी का मूल्यांकन भी सही होता है.

III. सरल औसत विधि (सिंपल ऐवरेज मेथड) 

किसी निश्चित तारीख को इन्वेंटरी में विभिन्न क्रय दरों पर खरीदी गई सामग्री हो सकती है. उसी दिन अगर कोई सामग्री उत्पादन इत्यादि के लिए जारी की जाती है, तो इन विभिन्न क्रय- दरो का सरल औसत निकाल लिया जाता है. और  इसी सरल औरत को  जारी करने  के  दर (issue rate) के रुप में  व्यवहार किया जाता है.

FIFO विधि में वर्णित उदाहरण के अनुसार सामग्री को तीन विभिन्न दरों पर खरीदा गया है यह दर है ₹1, ₹2, ₹3. क्योंकि इनकी संख्या 3 है, इसलिए इनका सरल औसत ₹2 [=(₹1+₹2+₹3)÷3] होगा. और इस प्रकार अगर 250 किलो सामग्री उत्पादन इत्यादि के लिए जारी की गई हो तो उसका मूल्य ₹500 (=250X₹2) होगा और 350 किलो क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य ₹1,000 (=50X₹2+300X₹3) होगा.

• इस विधि के लाभ (advantages)
1. इस विधि को समझना और उसका व्यवहार करना आसान है.
2. अगर क्रय दरों में सामान्य परिवर्तन हो, तो इससे सामग्री के जारी करने के दर में असर नहीं पड़ता है.
3. जब विभिन्न तारीखों पर खरीदे गए सामग्रियों आपस में मिल जाती हैं और उनका पहचान करना आसान नहीं होता, तो सरल औसत  विधि  उपयुक्त होता है.
4. यह विधि तब उपयुक्त होती है जब क्रय- दरों में परिवर्तन हो लेकिन क्रय की मात्रा (ऑर्डर क्वांटिटी) लगभग समान रहे.

• इस विधि से हानि (limitations)
1. कुल खर्च किया गया लागत सामान्य रूप से जारी किए गए सामग्री के मूल्य से नहीं मिलता है. इस प्रकार सामग्री पर लाभ या नुकसान हो सकता है.
2. अगर सामग्री का क्रय बार-बार हो, तो सामान्य औसत दर की गणना करना कठिन हो जाएगा.
3.जब नई सामग्री खरीदी जाती है और पुरानी सामग्री खत्म हो जाती है तब भी सामान्य औसत दर  की गणना फिर से करनी पड़ती है.
4. जब क्रय- मात्रा बहुत अधिक पैमाने पर बदलते हैं तब इस विधि के कारण सामग्री पर बहुत अधिक लाभ या नुकसान हो सकता है.
5. क्लोजिंग स्टॉक के मूल्य की जांच करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इस विधि के अनुसार विभिन्न समय पर खरीदे गए सामग्रियों की पहचान बनाए रखना आवश्यक नहीं है.
6. कभी-कभी मूल्य वृद्धि के समय क्लोजिंग स्टॉक का मूल्य नकारात्मक (negative) भी हो सकता है.

IV. भार-गत औसत विधि (वेटेड ऐवरेज मेथड) 

इस विधि के अनुसार उत्पादन इत्यादि के लिए जारी किए गए सामग्री के दर की गणना निम्न प्रकार से की जाती है. जारी करने की तिथि पर इन्वेंटरी में उपस्थित सामग्री के कुल मूल्य को सामग्री की कुल इकाइयों से भाग दिया जाता है इस प्रकार भार-गत या वेटेड औसत प्राप्त होता है.
सरल औसत दर विधि में केवल क्रय- दरों का औसत निकाला जाता है; और इसमें विभिन्न समय पर खरीदे गए सामग्री की मात्राओं की अवहेलना की जाती है. लेकिन भार-गत औसत विधि में भिन्न-भिन्न तारीखों पर खरीदे गए मात्राओं को भी उचित महत्व दिया जाता है.

FIFO विधि में उल्लेखित उदाहरण के अनुसार जारी करने की दर की गणना निम्नलिखित प्रकार से होगी...

 वेटेड ऐवरेज रेट= (100 X ₹1 + 200 X ₹2 + 300 X ₹3) ÷ (100 + 200 + 300)
= ₹1400/600 =₹2.33333  या ₹2.33 (लगभग)

इस प्रकार, जारी किए गए 250 किलो सामग्री का मूल्य लगभग  ₹583  (=250 X ₹2.33) और क्लोजिंग स्टॉक के 350 किलो  का मूल्य लगभग ₹817 (=₹1400 - ₹583) होगा.

 सामान्य सूत्र (जनरल फार्मूला)
 अगर यह मान लिया जाए कि तीन विभिन्न तारीखों पर किसी सामग्री की x, y और z मात्रा a, b और c रुपए प्रति इकाई की दर से खरीदी गई हो, तो जारी करने की दर होगी...

 वेटेड ऐवरेज दर =
(ax+by+cz)÷(x+y+z)  ₹ प्रति इकाई

• इस विधि से लाभ (advantages)
1. इस विधि के उपयोग से मूल्य (price) परिवर्तन (fluctuation) के असर को न्यूनतम किया जा सकता है.
2. अगर सामग्री की नई खेप (lot) नहीं आती है तो पुराना दर ही व्यवहार किया जाता है.
3. सामग्री पर लाभ या हानि सिर्फ उसी अवस्था में होती है जब गणितीय हिसाब में कुछ त्रुटि हो.
4. अगर सामग्री की खरीद बार-बार न की जाए, तो इस विधि के उपयोग से समय और ऊर्जा की बचत होगी. क्योंकि यह एक सरल विधि है.
5. जब सामग्री के  क्रय के खेप की मात्रा और उनका बाजार दर दोनों परिवर्तनशील होते हैं, तब यह विधि उपयुक्त होती है.

• इस विधि से हानि (limitations) 

1. जिस संस्था में सामग्री के क्रय का लेनदेन बहुत अधिक होता है वहां पर वेटेड एवरेज दर की गणना बार-बार करनी पड़ती है.
2. जिस मूल्य पर सामग्रियों को उत्पादन इत्यादि के लिए जारी किया जाता है वह मूल्य ना ही ऐतिहासिक (cost) होते हैं ना ही बाजार मूल्य (market value) होते हैं.
3. इस विधि के प्रयोग से सामग्री पर लाभ या हानि हो सकता है. इससे बचने के लिए वेटेड एवरेज दर को लगभग 4 या 5 दशमलव  बिंदुओं (जैसे ₹2.33 के बदले ₹2.3333 इत्यादि) तक व्यवहार करना चाहिए.

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