Saturday, 28 October 2017

काला धन यानी ब्लैक मनी

भूमिका

किसी भी देश के कानून के अनुसार जो आय करमुक्त हैं उनके अलावा जिस आय पर कर नहीं या कम दिया जाता है उस आय को काला धन कहा जा सकता है. यह जानबूझ कर या अनजाने में किया जा सकता है. दोनों अवस्थाओं में पूरी आय की धनराशि को कालाधन माना जाना चाहिए. अगर किसी व्यक्ति ने सौ रुपए (या रु.100 करोड़) कमाएं और उस पर 10% की दर से आय कर देना आवश्यक है, और अगर उसने आयकर नहीं अदा किया तो कुल आय अर्थात ₹100 ( या 100 करोड़ रुपए) को कालाधन माना जाएगा.

वर्तमान समय में अर्थव्यवस्थाओं में  कागज या धातु की मुद्रा का व्यवहार हो रहा है वहां पर काला धन की उत्पत्ति और वृद्धि की संभावनाएं अधिक है.

इस समस्या के निवारण के लिए कागज और धातु की मुद्रा का व्यवहार कम या बंद करना होगा. और ऑनलाइन कार्ड इत्यादि भुगतान को बढ़ावा देना होगा. प्रौद्योगिकी का व्यवहार इसमें बहुत अधिक सहायक हो सकता है.

उत्पत्ति और अनुकूल परिस्थितियां

काला धन की उत्पत्ति का मूल कागज और धातु मुद्रा के प्रचलन और व्यवहार से है. प्रौद्योगिकी की कमी और कानून पालन अभिकर्ताओं की कमी के कारण भी इसका विकास होता जा रहा है. कई देशों के बीच कई प्रकार की वित्तीय और कर संबंधी संधियों के कारण लोग एक देश से दूसरे देश आसानी से कालाधन को भेज और मंगा पा रहे हैं. जिससे काला धन को रखने और बढ़ाने का प्रोत्साहन मिलता रहता है.

तीसरी दुनिया के देशों में भव्य सार्वजनिक संस्थान जैसे जीवन बीमा कंपनी, रेल मार्ग कंपनी, डाक सेवा कंपनी, तेल और गैस बेचने वाली कंपनियां, इत्यादि आसानी से नगद धन स्वीकार करते हैं इस प्रकार कई लोग आसानी से काला धन को खर्च कर पाते हैं और कर देने से आसानी से बच जाते हैं इस प्रकार काला धन रखने वाले लोगों को किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता क्योंकि वह इस धन को आसानी से खर्च कर सकते हैं. इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति ऑनलाइन या डेबिट और क्रेडिट कार्ड से भुगतान करना चाहता है तो वह एक अतिरिक्त धनराशि भी चार्ज करते हैं जो कि सफ़ेद धन खर्च करने वालों को हतोत्साहित करता है. इसलिए वह मजबूर होकर अपने सफेद धन को भी नगद में परिवर्तित करते हैं. और इस प्रकार सफेद धन भी काली अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन जाता है.


इमारत निर्माण प्रवर्तक (बिल्डर या प्रोमोटर) कुल विक्रय राशि का एक हिस्सा नगद के रूप में लेने पर जोर देते हैं जिससे उन्हें उस धनराशि पर कर नहीं चुकाना पड़े. जैसे अगर आपने 7 लाख रुपए की अचल संपत्ति खरीदी है, तो शायद आपको 2 लाख रूपय या उससे अधिक नगद धन के रूप में देना पड़ेगा. यह 2 लाख रुपए काला धन है, क्योंकि इस पर वह बिल्डर कोई कर जमा नहीं करेगा.
बिल्डर के द्वारा की गई यह क्रिया गैरकानूनी है; और आप ऐसे बिल्डरों से अचल संपत्ति नहीं भी खरीद सकते हैं या उन्हें पूरी धनराशि चेक के माध्यम से दे सकते हैं.

तीसरी दुनिया के कई खुदरा व्यापारी (रिटेल ट्रेडर) अपने ग्राहकों को भुगतान की रसीद नहीं देते हैं जिससे वह आय पर कर बचा लेते हैं; और उनके द्वारा प्राप्त अन्य प्रकार के करो जो कि वस्तु के मूल्य में पहले से ही जुड़ा रहता है उसे भी सरकार के पास जमा नहीं करते हैं जिससे सरकार को कर की प्राप्ति में कमी होती है, और काला धन में वृद्धि होती है. इस प्रकार यह  अर्थव्यवस्था के लिए दुगने रूप से खतरनाक है. आप अगर कोई भी वस्तु या सेवा खरीदते हैं और उसका भुगतान करते हैं, तो आपको उसका रसीद अवश्य मिलना चाहिए. अगर कोई विक्रेता रसीद देने से इंकार करता है, तो यह गैरकानूनी क्रिया होगी. आप हमेशा एक मान्य रसीद प्राप्त करने के लिए जोर दे सकते हैं. एक व्यक्ति ने दवा की दुकान से लगभग ₹500 की दवाई खरीदी जिसमें कुछ सरकारी कर भी जुड़े हुए थे. दुकानदार ने क्रेता  को भुगतान की कोई रसीद नहीं दी. इस प्रकार विक्रेता द्वारा किए गए आय का कोई प्रमाण नहीं बनता है. इस प्रकार वह क्रेता द्वारा दिए गए कर की भी चोरी करता है और अपने द्वारा किए गए आय पर भी कर नहीं देता है.

तीसरी दुनिया के देशों में करोड़ों-अरबों रुपए का लेन-देन  नगद में आराम से हो सकता है. इस पर कोई रोक-टोक या कानूनी पाबंदी नहीं है. कानून में एक सीमा के पश्चात नगद धन का लेन-देन मना है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति या संस्था ऐसा करता है, तो उसकी जांच और पकड़ के लिए कोई विशेष और कारगर व्यवस्था उपस्थित नहीं है. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इन समस्याओं का समाधान करने में अक्षम और लाचार है. इस में जन भागीदारी बहुत अधिक आवश्यक है.

तीसरी दुनिया के देशों के में बड़े-बड़े हस्पताल और नर्सिंग होम्स में भी डेबिट या क्रेडिट कार्ड के द्वारा भुगतान आज भी नहीं स्वीकार किया जा रहा है! वे सिर्फ नगद ही लेते हैं! इसके पीछे क्या वजह हो सकती है. यह स्पष्ट है कि अगर कोई संभावना हो, तो वह अपने आय को छिपाना चाहते हैं. आजकल चिकित्सा-खर्च आसमान छू रहे हैं. साधारण सी बीमारी पर भी सैकड़ों - हजारों रुपए खर्च होते हैं. लेकिन छोटे-बड़े अस्पतालों में आज भी नगद लेनदेन हो रहा है! क्या इससे कालाधन को प्रोत्साहन और बढ़ावा नहीं मिल रहा है? सरकार और कानून पालन अभिकर्ताओं को यह सुनिश्चित करनी चाहिए कि ऐसी संस्थाओं में जहां पर धन का लेन-देन बहुत अधिक मात्रा में होता है वहां एक निश्चित सीमा के बाद नगद का लेनदेन गैरकानूनी हो.

कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों में भी आज भी कैश या नगद धन के रूप में ही शुल्क इत्यादि लिए जाते हैं! वह डेबिट या क्रेडिट कार्ड या ऑनलाइन बैंकिंग के जरिए शुल्क प्राप्त करने की सुविधा नहीं प्रदान करते. इसका क्या कारण हो सकता है? नगद भुगतान की प्राप्ति के लिए कर्मचारी रखना; नकली नोटों की जोखिम; उसे बैंक में जमा कराते समय चोरी या डकैती की संभावना, इत्यादि असुविधाएं होने के बावजूद भी यह संस्थाएं नगद धनराशि में ही भुगतान स्वीकार करते हैं! ऐसा क्यों है? क्या वे  काला धन को प्रोत्साहित करना चाहते हैं? अधिकतर शिक्षण संस्थाओं में शुल्क को चेक, नेट बैंकिंग या कार्ड से भुगतान की सुविधा अनिवार्य रुप से होनी चाहिए. अगर कोई व्यक्ति या विद्यार्थी इन सुविधाओं का व्यवहार नहीं करता है, तभी शुल्क इत्यादि को कैश या नगद धनराशि के रूप में सिर्फ बैंक की शाखाओं में ही जमा लेने की व्यवस्था होनी चाहिए.


प्रभाव

जब नदी में ज्वार आता है तो पानी के सभी जहाज ऊपर उठ जाते हैं. यह एक बहुत ही पुरानी कहावत है, लेकिन पिछड़ी दुनिया और विकसित दुनिया के भी कई देशों के लोग अपने व्यक्तिगत हित के लिए काला धन का व्यवहार करना अनुचित नहीं समझते हैं. अपने व्यक्तिगत हित और उन्नति को ही सर्वोपरि रखते हैं. उन्हें देश और मानवता के विकास की चिंता नहीं होती है. आजकल तीसरी दुनिया के देशों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर मिलाकर लगभग 30 से 50% तक है. कई देशों में अप्रत्यक्ष कर लगभग 15% है. इस प्रकार गरीब से गरीब व्यक्ति भी ₹1 खर्च करने पर भी कर का भुगतान कर रहा है. जबकि करोड़ो रुपए काला धन कमाने वाले सरकार को ₹1 भी कर नहीं देते हैं. क्या यह अवस्था उचित है? क्या यह न्याय संगत है?  ऐसा प्रतीत नहीं होता. यह पूर्ण रूपेण अन्यायपूर्ण है. अगर हर व्यक्ति ईमानदारी से अपने कर का भुगतान करें तो सरकार को इतनी अधिक अप्रत्यक्ष कर लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. जो व्यक्ति मुश्किल से अपना जीवन बसर कर रहा है उसे अपने खर्च की गई राशि का लगभग 15% कर के रूप में नहीं देना पड़ेगा.

काला धन कमाने और व्यवहार करने वाले लोग हमेशा यह सुनिश्चित करते हैं कि यह धन सफेद अर्थव्यवस्था में ना आ पाए अर्थात वह कभी भी काला धन को बैंकिंग व्यवस्था में नहीं आने देते हैं. इसका खर्च वो अपने व्यक्तिगत खर्चे और अन्य कर से बचने के लिए किए गए लेन-देन में करते हैं. इस प्रकार काला धन से किए गए लेन-देन भी कालाधन को प्रोत्साहित करते हैं. क्योंकि इस अवस्था में भी जिन व्यक्तियों को यह धन प्राप्त होता है वह लोग भी इसे छिपाते हैं, ताकि उन्हें भी कर ना देना पड़े.

बैंकिंग व्यवस्था से धन बाहर निकल जाने के फलस्वरूप बैंकों के पास ऋण देने लायक धनराशि (लोनेबल फंड) की कमी हो जाती है. इस प्रकार आपूर्ति (सप्लाई) में कमी होने, और मांग (डिमांड) में वृद्धि होने के फलस्वरूप ब्याज दर बढ़ता जाता है. जो कि किसी भी देश के व्यवसाय जगत की उन्नति के लिए एक बाधा है. जब भी ऋण पर ब्याज दर कम होता है, तो उद्योग-धंधों और अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की स्थापना और सञ्चालन की जाती है. अगर ब्याज दर अधिक होता है, तो उद्यमी पुरुष इन गतिविधियों में हाथ नहीं लगाते. जिससे बेरोजगारी और खर्च करने लायक आय (डिस्पोजेबल इनकम) में कमी होने लगती है. इसके फलस्वरूप वस्तु और सेवाओं के मांग में और कमी आने लगती है. जिससे उद्योग धंधों के विक्रय और आय में कमी आने लगती है. इस प्रकार आय कम होने से कुछ और लोगों की नौकरी चली जाती है. जिससे बेरोजगारी और बढ़ती है; और गरीबी का यह कुचक्र निरंतर चलता जाता है.

 उद्योग जगत में मंदी के फलस्वरूप सरकार को कर-प्राप्ति (टैक्स कलेक्शन) भी कम होने लगती है. जिससे बुनियादी रचनाओं (इंफ्रास्ट्रक्चर) के निर्माण और जनकल्याण में खर्च घटने लगता है. जिससे अर्थव्यवस्था और पीछे जाने लगती है. जिसके फलस्वरूप सरकार को मजबूरी में कर की दर और बढ़ानी पड़ती है. जिससे आय  को छुपाने की प्रवृति को और बढ़ावा मिलता है, और काले धन में वृद्धि होती है. इसके विपरीत अवस्था में कर के दर में कमी आती और आय छिपाने की प्रवृत्ति में भी कमी आती है. जिसके फलस्वरूप काला धन मूल रूप से कम होने लगता.


निवारण

काला धन का मूल कागज या धातु मुद्रा (पेपर और मेटल करेंसी) है. इसका प्रचलन और प्रसारण धीरे-धीरे कम करने का प्रयास और उपाय करना चाहिए. तो इसका विकल्प क्या होगा? इसका विकल्प वर्तमान समय में भी प्रभावी रूप से विद्यमान हैं. दुनिया के पिछड़े देशों में भी आजकल इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, संदेश (SMS) बैंकिंग, एप्प बैंकिंग, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, ATM कार्ड, प्रीपेड कार्ड, ई वॉलेट, इत्यादि भुगतान के साधन उपलब्ध हैं. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस ऑनलाइन व्यवस्था या वर्चुअल करेंसी की व्यवस्था की स्थापना, रखरखाव, संचालन और स्थायित्व पर भी बहुत अधिक खर्च हो चुका है; और भविष्य में भी करना पड़ेगा. लेकिन यह बात ध्यान रहे कि आज की वर्तमान परिस्थिति में भी कागज और धातु मुद्रा का भी संचालन और रखरखाव कम खर्चीला नहीं है. आप केवल कल्पना कर सकते हैं कि आज की वर्तमान नगद अर्थव्यवस्था (कैश इकोनॉमी) में कितने कागजी और धातु मुद्रा प्रचलन में है. इनके निर्माण का खर्च, इनके रखरखाव का खर्च, इनके परिवर्तन का खर्च, नकली मुद्रा से बचने का खर्च, इत्यादि भी कम नहीं होंगे.  शायद यह खर्च प्रद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) में लगाए खर्चों से बहुत अधिक होंगे. इस प्रकार हमें धीरे-धीरे  कैश इकोनॉमी से कैशलेस इकोनॉमी (नकद रहित अर्थव्यवस्था) की तरफ कदम बढ़ाने का प्रयास करते रहना चाहिए.

जो संस्था व्यापार लाइसेंस (ट्रेड लाइसेंस) का आवेदन करती है उन्हें अनिवार्य रूप से धनारोपण यंत्र (चार्ज मशीन) लगाना होगा. इस प्रकार कई क्रेता अपने कार्ड के जरिए भुगतान कर पाएंगे. इससे चिल्लर की समस्या का समाधान होगा; कैश के व्यवहार में कमी आएगी; और नकली मुद्रा की समस्या का भी समाधान होगा. विक्रेता के लिए कैश हैंडलिंग जोखिम और खर्च भी घटेगा.

कई विशालकाय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जैसे रेल मार्ग, बीमा कंपनी, डाक सेवा, तेल और गैस विक्रेता कंपनी, इत्यादि आज भी कार्ड भुगतान पर अतिरिक्त चार्ज लेते हैं. जो कि ऐसे क्रेताओं को हतोत्साहित करता है जो सफेद धन का उपयोग करना चाहते हैं. इस प्रकार कैश के व्यवहार यानी काला धन को प्रोत्साहन मिलता है. अतिरिक्त चार्ज लेने के बदले जो व्यक्ति कार्ड से भुगतान करते हैं उन्हें छूट या कैशबैक मिलना चाहिए. क्योंकि उन्होंने अपने आय पर पहले ही कर चुका दिया है. इसके विपरीत जो व्यक्ति या संस्था जानबूझकर कैश का व्यवहार करना चाहते हो, उन पर एक सुनिश्चित सीमा के बाद कैश लेन-देन सरचार्ज लगाना चाहिए. यह न्यायसंगत भी है, क्योंकि उन्होंने शायद अपने आय पर कर का भुगतान नहीं किया था. जो उन्हें आज सरचार्ज के रूप में करना पड़ेगा.

 इंग्लैंड (UK) में सर्वाधिक मूल्य की मुद्रा £50 (50 पाउंड) की है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कई एशियाई देशों के मुद्रा का मूल्य इंग्लैंड देश की मुद्रा से कम है. फिर भी अगर बहुत कम फेस वैल्यू (अंकित मोल) की मुद्रा का केवल प्रचलन किया जाए, तो काला धन की समस्या से बचा जा सकता है. उदाहरण के रूप में अगर भारत में केवल ₹10 की मुद्रा चले, तो अगर किसी के पास ₹100 करोड़ का कालाधन है, तो उसे लगभग 10 लाख ₹10 के नोट रखने पड़ेंगे, जोकि व्यवहारिक रुप से बहुत आसान नहीं होगा. इससे कानूनी अधिकारियों और कानून पालन अभिकर्ताओं को काला धन रखने वालों की पहचान और पकड़ करने में आसानी होगी.

अनन्य पहचान पत्र या संख्या (यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड/नंबर)
अगर किसी भी देश के हर नागरिक को उनकी उंगलियों के चिंह, रेटीना चिन्ह, इत्यादि के आधार पर एक अनन्य पहचान संख्या या कार्ड जारी कर दिया जाए, तो किसी भी व्यक्ति के लिए अपनी पहचान छुपाना कठिन कार्य होगा. इस अनन्य पहचान संख्या के आधार पर ही कोई व्यक्ति अपना बैंक खाता या मोबाइल कनेक्शन ले पाएगा. इसके अभाव में कोई भी व्यक्ति बैंक में खाता खुलवा या मोबाइल कनेक्शन नहीं ले पाएगा. इस प्रकार कोई भी व्यक्ति केवल एक ही बैंक खाता खुलवा और चला पाएगा. उसको आजादी होगी कि वह अपने मनपसंद बैंक में अपना खाता चला सके. उसे किसी भी पसंदीदा बैंक में जाकर अपनी अनन्य पहचान संख्या या उससे आधारित कोई विशिष्ट संख्या बतानी होगी, और उसका खाता प्रौद्योगिकी के उपयोग से तत्काल प्रभाव से उस बैंक में हस्तांतरित हो जाएगा. इस प्रकार कोई भी व्यक्ति अलग-अलग पहचान पत्रों के आधार पर कई बैंकों में कई खाता नहीं खुला पाएंगे. इससे किसी भी व्यक्ति के कुल आय का पता वैधानिक अधिकारी  आसानी से कर पाएंगे, और करारोपण में सहायता होगी.

 अनन्य पहचान की व्यवस्था को स्थापित करने और उसके रखरखाव में भी प्रौद्योगिकी पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ेगा. लेकिन यह स्पष्ट है कि यह खर्च इस व्यवस्था के फलस्वरूप कर चोरी में कमी से बहुत कम होगी; और इस व्यवस्था को लागत प्रभावी यानी कॉस्ट इफेक्टिव व्यवस्था कहा जा सकता है.

टिप्पणी: 
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