संछिप्त विवरण
यह सिक्का यानी धातु की मुद्रा की एक काल्पनिक आत्मकथा है. इसे एक साहित्यिक रचना और लेखक की कल्पना मात्र समझा जाना चाहिए. इसलिए पाठकों से यह आशा और निवेदन है कि किसी भी उद्देश्य के लिए इस आत्मकथा का उपयोग करते समय अपने विवेक का व्यवहार करें.
उत्पत्ति और नामकरण
मैं एक सिक्का हूं. अर्थात धातुई धन. यह मेरा जातिवाचक नाम है. क्योंकि मैं मेरे ही जैसे अनगिनत सिक्कों में से एक हूं. मैं सही तरह से नहीं जानता कि मेरा आविष्कार कब हुआ. लेकिन मैंने एक छात्र को अपने इतिहास की किताब को पढ़ते हुए सुना था कि किसी मुगल शासक ने भारत में चमड़े से बने सिक्कों के प्रचलन का प्रयास मुगल काल में किया था. मुझे ऐसा लगता है कि यद्यपि यह विचार अच्छा था, लेकिन दीर्घकाल में यह व्यवस्था चिरस्थाई होने लायक नहीं थी. इसलिए मेरा विश्वास है की शायद ही कोई चमड़े से बना सिक्का विश्व के किसी भी हिस्से में आज प्रचलित होगा. मैंने सुना है कि लोग मेरे आविष्कार से पहले वस्तुओं का विनिमय किया करते थे. इस व्यवस्था को वस्तु-विनिमय व्यवस्था या बार्टर सिस्टम कहा जाता था. कभी-कभी मैं अभी भी सुनता हूं कि कुछ पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं में यह प्रथा आज भी प्रचलन में है. इसके विपरीत प्लास्टिक धन, वर्चुअल धन, ऑनलाइन धन हस्तांतरण, इत्यादि के आविर्भाव के कारण मेरा अस्तित्व दूरगामी भविष्यत काल में खतरे में प्रतीत होता है. वस्तु-विनिमय व्यवस्था में कुछ बुनियादी समस्याएं थी; जैसे की दोहरी सम- घटना (डबल को-इंसिडेंस), मूल्यवान वस्तुओं और जैव उत्पादों जैसे पशु इत्यादि की अविभाज्यता ( इनडीविजिबिलिटी). शायद इसीलिए मुद्रा नामक एक विनिमय के साधन के आविष्कार की आवश्यकता का जन्म हुआ. मैं शायद धन का आदि अवतार हूं.
वर्तमान व्यवस्था
आजकल विश्व के लगभग प्रत्येक सर्वभौमिक देशों में मेरा उत्पादन अधिकारप्राप्त वैधानिक निकायों (अथॉराइज्ड स्टेच्यूटोरी बॉडीस) के द्वारा किया जाता है. इन निकायों को साधारण भाषा में केंद्रीय बैंक या मौद्रिक अभिकर्ता (मोनेटरी एजेंसी), इत्यादि के नाम से जाना जाता है. कुछ देशों में जातिवाचक (कामन) मुद्रा; जैसे यूरो (यूरोपियन यूनियन), रूबल (कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स), इत्यादि का प्रचलन भी हो सकता है. मैं सामान्यता धातु या मिश्र धातु का बना होता हूं. मैं जंग-रहित और अक्षय धातु या मिश्र धातु का बना होता हूं. जिससे मैं दीर्घकाल तक टिक सकूं. पुराने समय में मैं मूल्यवान धातु जैसे सोना, चांदी इत्यादि का भी बना होता था. आजकल मैं सामान्यतः लोहा या इस्पात-मिश्र धातु का बना होता हूं. इसमें निकल की परत हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती है. कई देशों में मेरा रंग पीतल की तरह पीला हो सकता है. कई सिक्के दो रंग वाले भी होते हैं; जैसे भारत में ₹10 का सिक्का और इंग्लैंड में £2 (पाउंड) का सिक्का.
मेरे जीवन की कहानी
मैं अपने जीवन की कहानी आपको संछेप में बतलाना चाहता हूं. मेरा जन्म भारत में कुछ वर्षों पहले हुआ. मैं बहुत खुश था क्योंकि मैं चमक रहा था. और मैं अपने ही जैसे अनगिनत चमचमाते हुए सिक्कों के बीच में था. मुझे एक जूट के थैले में अपने कई अन्य साथियों के साथ बांधा गया. ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं अपने जीवन की पहली यात्रा शायद एक मोटर गाड़ी में कर रहा था. मुझे नींद आ गई. जब मैं जागा तो मैंने देखा कि दोपहर का समय है. मैं अपने किसी भी साथी को नहीं देख पा रहा था. मैंने पाया कि मैंने काम करना शुरू कर दिया है. लोग मुझे किसी भी वस्तु के बदले विनिमय करने लगे थे. कुछ महीनों या वर्षों_क्योंकि मैं कैलेंडर या घड़ी नहीं देख पाता था_ के बाद मैं एक छोटे से बच्चे की हथेलियों में पहुंचा. उसका नाम फूचुंग था. उसने अपने पाउडर के डिब्बे वाले बैंक में मुझे डाल दिया. मुझे अपने व्यस्त कार्यक्रम से कुछ समय के लिए आराम मिला. उस पाउडर के डब्बे वाले बैंक में मुझे अपने ही जैसे कई सिक्के मिले. उनका मोल अलग-अलग था. उनमें से कुछ मुझसे बड़े थे और कुछ मुझसे छोटे थे. मैं उनसे बातें करने लगा और यह पाया कि उनकी भी कहानी लगभग मेरे जैसे ही थी. किसी ने मुझसे कहा कि मुझ पर 2013 अंकित है. अर्थात मेरा जन्म 2013 में हुआ था. और अब मैं नहीं चमकता था. यह स्पष्ट है कि मैं 3 साल का हो चुका था. और मैं अपने जन्म के समय की चमक खो चुका था. कुछ समय बाद मुझे लगने लगा कि मैं एक कारागार में हूं.
मुझे कुछ बच्चों द्वारा पढ़ी गई कहानियां याद है. पुराने जमाने में राजा, रानी, डाकू और समुद्री डाकुओं के समय में मैं सामान्यत: सोने का बना होता था. मेरे स्वामी मुझे गुप्त कक्षों में, गुफाओं में, जमीन के अंदर गाड़कर मेरी सुरक्षा करना चाहते थे. भगवान का शुक्र है कि मुझे जीने के लिए ऑक्सीजन, खाना और पानी की जरूरत नहीं पड़ती है. अन्यथा मैं आपको अपनी कहानी बताने के लिए जीवित नहीं रहता. मुझे यह भी याद है कि मुझे इसी प्रकार एक बार और आराम करने का अवसर मिला था. जब एक भक्त ने मुझे एक ईश्वर की प्रतिमा के चरणों में अर्पित किया था. मुझे हमेशा विभिन्न प्रकार के सुगंध मिलते रहते; जैसे फूलों और फलों इत्यादि की सुगंध. यह मेरे जीवन का शायद सबसे राजकीय समय था. लेकिन यह समय बहुत दिनों तक नहीं रहा. एक बार मुझे पुरोहित जी ने खर्च कर दिया और इसी प्रकार कई हाथों को बदलते हुए मैं फिर से एक भक्त के द्वारा एक नदी में अर्पित कर दिया गया. वहां पर मैं नदी के तल में धीरे-धीरे आगे और पीछे बहता रहा. मैं वहां पर शायद एक लंबे समय तक रहा. फिर एक दिन मैं शायद किसी पवित्र मंदिर के किनारे पहुंच गया था. और एक शरारती और साहसी बच्चे ने मुझे पाया और उसने कुछ मिठाइयों के लिए मुझे खर्च कर दिया. मैं बाजार में फिर से अपने व्यस्त कार्यक्रम मे वापस आ गया.
जब उस बच्चे का बैंक भर गया तब मुझे आजादी मिली. उस बच्चे की मां ने उस बैंक को खोलकर सभी सिक्कों को बाहर निकाला. कई दिनों बाद मुझे ताजी हवा का आनंद प्राप्त हुआ. मुझे यह अच्छा लगा. उस बच्चे ने सभी सिक्कों को अपनी मां को दे दिया और उसकी मां ने उन्हें गिन कर उसके पिताजी को दे दिया. उसके पिताजी ने उस बच्चे को कुछ कागजी मुद्रा दि और उससे वादा किया कि अगर वह भविष्य में भी ऐसे ही पैसे बचाता रहेगा, तो उसके पिता उसे और अधिक धन देते रहेंगे. वह बच्चा शायद मेरे ही उम्र का था. वह बहुत ही प्यारा बच्चा था. मैं उसे हमेशा याद करता हूं. उसके पिता ने मुझे उसी दिन ही एक बस में यात्रा के समय खर्च कर दिया. मेरी पुरानी यात्रा फिर से आरंभ हो गई. मैंने कई हाथ प्रत्येक दिन बदले और मैंने इसे खुशी-खुशी किया. लेकिन जब भी मैं लोगों द्वारा किए जानेवाले बातों का ध्यान करता हूं तो मेरा दिल बैठ जाता है. मैंने लोगों को बातें करते हुए सुना है कि गैर कानूनी और अनैतिक तरीके से लाभ कमाने के लिए कुछ लोग मुझे पिघलाकर कई प्रकार के अन्य वस्तुएं बनाते हैं. शायद इसीलिए मैं कभी-कभी दुर्लभ हो जाता हूं. अचानक लोग मेरा साथ नहीं छोड़ना चाहते हैं. मैंने सुना है कई लोग और व्यापारी मेरी कमी के कारण समस्याओं से जूझते हैं. कई क्रेता आवश्यक सामान नहीं खरीद पाते और कई बार यात्रियों और बस चालकों या ऑटो रिक्शा चालकों के बीच मेरी किल्लत के कारण छोटे-मोटे झडप और झगड़े भी होते रहते हैं. मुझे यह अवस्था अच्छी नहीं लगती है. मुझे आश्चर्य होता है कि क्यों कानून उन लोगों को नहीं पकड़ते जो गैर कानूनी और अनैतिक रूप से लाभ के लिए मुझे पिघला देते है. जो भी हो यह समस्या स्थाई न होकर चक्रीय है. कभी-कभी मैं बाजार में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो जाता हूं और किसी को कोई प्रकार की समस्या नहीं होती: और कभी-कभी मैं दुर्लभ हो जाता हूं और लोग मेरे लिए झगड़ते भी हैं.
मेरा जीवन दर्शन
जो भी हो, मैं जानता हूं कि पदार्थ अविनाशी है. इसलिए मैं अब बिल्कुल नहीं डरता हूं. जिस भी चीज का जन्म हुआ है उसका मृत्यु अपरिहार्य है. यह जीवन का चक्र है. एक चक्र के पूरा होने के बाद उसे पुनः फिर से कार्यभूमि में अपने नए कर्तव्य के पालन के लिए वापस आना पड़ता है. मुझे महसूस होता है कि मेरा जन्म उन लोगों की सेवा के लिए हुआ था जो विनिमय अर्थात क्रय -विक्रय करना चाहते हैं. और मैं अपने कर्तव्य को बहुत ही संतोषजनक रुप से करता जा रहा हूं.
विदाई के शब्द
मैं शायद आपको यह बताना भूल गया कि मैं एक ₹1 का सिक्का हूं. शायद हम भी कभी मिलेंगे.
अस्वीकरण: किसी भी प्राकृतिक या कृत्रिम व्यक्ति, प्राधिकरण या सत्ता से किसी भी रूप का मेल केवल संयोग मात्र है. इसलिए पाठकों से केवल पाठक-सुलभ नजरिया रखने की आशा करता हूं. धन्यवाद.
• इस ब्लॉग को इंग्लिश में भी पढ़ा जा सकता है.
• This blog may be read in English too.
No comments:
Post a Comment