Saturday, 28 October 2017

शिक्षा: विश्व परिवर्तन का एक साधन

संक्षिप्त विवरण

इस ब्लॉग में मैं शिक्षा को एक ऐसी साधन के रुप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं जो विश्व में कई बुराइयों को दूर कर सकता है; मानव कल्याण और उन्नति को और प्रगतिशील बना सकता है; यह कुरीतियों का रामबाण बन सकता है; और इस प्रकार शिक्षा वह साधन वह औजार या वह हथियार कहा जा सकता है जिससे हम पूरी दुनिया को बदल सकते हैं.

भूमिका

"मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है." स्वामी जी इस महान देश के लोगों द्वारा किस प्रकार  मानव सेवा अर्थात  दीन- दुखियों की सेवा करवाना चाहते थे ? क्या उनके प्रति सिर्फ दानशील होकर या उनके प्रति सहानुभूति शील होकर? शायद मानव सेवा का उनका विचार केवल सैद्धांतिक या दार्शनिक नहीं था. उनके विचार व्यवहारिक थे. एक चीनी कहावत है, "अगर आप एक आदमी को एक दिन खिलाना चाहते हैं, तो उसे एक मछली दान दे` . लेकिन अगर आप उसे जीवन भर खाना खिलाना चाहते  हैं, तो उसे मछली पकड़ना सिखाएं." इसलिए समाज के शैक्षणिक और वित्तीय रूप से पिछड़े स्तरों को वित्तीय- और प्रौद्योगिकी- साक्षर बनाना आवश्यक है. उन्हें बैंकों और गैर बैंकिंग कंपनियों में अंतर को समझना आवश्यक है. इस प्रकार वह अपने कड़ी मेहनत की कमाई को डूबने से बचा  सकेंगे. उन्हें बीमा के महत्व को समझना आवश्यक है. उन्हें प्रौद्योगिकी-साक्षर होना पड़ेगा. जिससे वे भ्रष्टाचार- नाशक  प्रद्योगिकी का लाभ उठा सके. जैसे अर्धईश्वर इंटरनेट का उपयोग  ATM और ऑनलाइन दूरसंचार, लेन देन, इत्यादि के रूप में.

अब प्रश्न यह उठता है कि यह कौन करेगा? पैसे कहां से आएंगे? यह महान देश इसके नागरिको का है. लेकिन इस की संपत्ति केवल अमीर और भ्रष्ट लोगों की है! आज भ्रष्ट लोग लाखों-करोड़ों रुपए लूट सकते हैं. लेकिन समाज के पास शैक्षणिक बुनियादी रचनाओं की स्थापना के लिए धन नहीं है! हम आज भी कई गांव में बिजली, दूरसंचार , शैक्षणिक संस्थाओं की सुविधा, इत्यादि नहीं पहुंचा सके. जो कि निश्चित रूप से दुखद है.

शिक्षा की परिभाषा

शिक्षा मानव मन में ज्ञान के बीज को परंपरा के खाद, अनुभव के प्रकाश, परहित की भावना के प्राण-वायु, और नैतिकता के जल से सींच कर सभ्य मानवता की खेती को शिक्षा कहा जा सकता है.

इसकी उत्पत्ति और विकास व्यक्तित्व के निर्माण और मनुष्य में विद्यमान दिव्य गुणों को उजागर करने के लिए हुआ था.

औजार या हथियार

औजार या हथियार का आविष्कार मनुष्य ने अपनी सुरक्षा और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए किया था.

आज भी मौलिक कारण वही है. लेकिन सभ्य मानवता का पूर्ण विकास नहीं होने के कारण इसका उपयोग कमजोरों पर अत्याचार और उनके शोषण के लिए किया जाने लगा और किया जा रहा है. आज शिक्षा का प्रधान उद्देश्य जीविकोपार्जन प्रतीत होने लगा है. लेकिन  धन अर्जन शिक्षा का केवल एक उप-उत्पाद यानी बाईप्रोडक्ट है. मनुष्य की प्रकृति हमेशा से प्रतिस्पर्धाशील रही है. इसलिए सभ्य समाज ने अन्य औजारों का त्याग करके शिक्षा को प्रतिस्पर्धा का आधार बनाया. जिससे वही समाज और व्यक्ति अब सबसे विकसित या उन्नत है जिसकी बौद्धिक क्षमता इस भौतिकवादी युग में सबसे कुशल और कारगर है.

शिक्षा से अर्जित ज्ञान और हथियारों से प्राप्त शक्ति का उपयोग और दुरूपयोग मनुष्यों द्वारा किया जाने लगा. और वह अभी भी प्रगति पर है. क्या यह शिक्षा का दोष है? नहीं, मनुष्य ने सभी अच्छी चीजों का दुरुपयोग करके उन्हें करप्ट किया. तो, हमें सही मार्ग कौन बनाएगा? हमारे मनीषी महामहिम तुलसीदास जी ने कहा है "परहित सरिस धर्म नहीं भाई| परपीड़ा सम नहीं अधमाई|" 

विश्व के सब धर्मों का मूल सिद्धांत मानव सेवा ही है. कुछ लोग या लोगों का समूह स्वार्थ साधन के लिए इनकी अजीब व्याख्या करते हैं. और ज्ञान और हथियारों का उपयोग आतंक फैलाने और निर्दोषों, कमजोरों और निहत्थों की हत्या में कर रहे हैं. क्या उसी ज्ञान, औजार और धन का उपयोग सृजन के लिए नहीं किया जा सकता? क्या आतंक में लगे धन और ज्ञान का उपयोग निरक्षर को शिक्षा, बेरोजगार को नौकरी, भूखे को खाना, बेघर को घर दिलाने, और अन्य परोपकारी कार्यों के लिए नहीं किया जा सकता है? हां, किया जा सकता है. हम यह कर सकते हैं. हमें दधीचि ऋषि, मदर टेरेसा, दानवीर कर्ण, बाबा आमटे, इत्यादि की तरह विद्या और बल का सदुपयोग करना होगा.  अपने ज्ञान की शक्ति का उपयोग परोपकार और विश्व के कल्याण के लिए करना होगा. ना कि इनका दुरूपयोग कमजोर पर शासन और उनका शोषण करने के लिए; और आतंक फैलाने के लिए.

प्रौद्योगिकी विज्ञान-विद्या का परिणाम है. यह अर्ध-ईश्वर प्रतीत होता है. यह सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान है. जैसे इंटरनेट. इसका भी सदुपयोग मानव सेवा और भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए हो रहा है; इसका और अधिक उपयोग होना चाहिए. एक बहुत ही सरल उदाहरण: इंटरनेट जानने वाले व्यक्ति घर बैठे ट्रेन टिकट कटा सकते हैं, बिजली के बिल जमा कर सकते हैं, मोबाइल रिचार्ज कर सकते हैं, अपने सगे संबंधी और मित्रों को आवश्यकतानुसार ऑनलाइन धन हस्तांतरित कर सकते हैं, इंटरनेट की सहायता से करों का भुगतान इत्यादि भी किया जा सकता है. इसकी सहायता से आप कई प्रकार के आवेदन और कई प्रकार की सरकारी और गैर सरकारी सेवाओं का भी उपभोग बिना बिचौलियों की सहायता से भी कर सकते हैं जिससे भ्रष्टाचार में कमी आती है. इसी प्रकार कई देशों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए सरकारी सहायता लोगों को प्रत्यक्ष रूप से प्रदान की जा रही है जिससे भ्रष्टाचार में व्यापक पैमाने से कमी करने में सहायता मिली है. इंटरनेट आज ज्ञान का महासागर है. जिसमें कोई भी जानकारी बहुत ही आसानी से प्राप्त हो सकती है. लेकिन शिक्षा और ज्ञान के अभाव में कई लोग इन्हीं कार्यों के लिए अनावश्यक समय और ऊर्जा खर्च और बर्बाद करते हैं.

 उपरोक्त चर्चा के आधार पर मैं समाज को_ जिसका मैं एक बहुत ही छोटा सा सदस्य हूं_सुझाव देने का साहस कर रहा हूं...

• शिक्षा का उद्देश्य धनोपार्जन के बदले सभ्य मानवता अर्जित करना हो. इसे विद्यार्थियों को बचपन से बताना और सिखाना होगा. ऐसा तभी संभव होगा जब शिक्षा को धन अर्जन के लिए स्पर्धा का आधार नहीं बनाया जाएगा.

• किताबी शिक्षा के बदले कर्म शिक्षा और व्यावहारिक प्रशिक्षण के द्वारा विद्यार्थियों को स्वावलंबन और जीविकोपार्जन सिखाना होगा.

• इसके लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे; और आबादी की वृद्धि दर न्यूनतम करनी होगी.

• धर्म के मूल सिद्धांत यानी मानव सेवा को दृढ़ रूपेण स्थापित करना होगा. ताकि तथाकथित धार्मिक असहिष्णुता, धार्मिक उन्माद और घृणा ना पनप सके.

• विज्ञान और प्रोद्योगिकी का उपयोग मानव सेवा, विकास और सृजन के लिए हो और 'ध्वंसात्मक विज्ञान' को ज्ञान और तर्क से हतोत्साहित करना होगा.

• विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग मानव कल्याण, असमानता उन्मूलन और भ्रष्टाचार उन्मूलन, इत्यादि जैसे परोपकारी कार्यों में करना होगा.

• आधुनिक काल में प्रशासन, व्यवसाय जगत और समाज मेलजोल से सहकारी व्यवस्था की स्थापना, संचालन, और नियंत्रण करें. जिससे शिक्षा का प्रचार और प्रसार हो सके; और अज्ञान और आसुरी उन्माद के अंधकार दूर हो सकें.

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