भूमिका
श्रम उत्पादन का एक महत्वपूर्ण साधन है. श्रम लागत कुल उत्पादन लागत का सबसे बड़ा तत्व हो सकता है. श्रम जीवित लोगों से संबंधित है, और श्रम लागत सामान्यतः सबसे महंगा होता है. इसलिए श्रम लागत की निगरानी या नियंत्रण अति आवश्यक है. श्रम लागत के अध्ययन के लिए निम्नलिखित बातों को जानना आवश्यक है...
• श्रम लागत समय का हिसाब
• टाइम कीपिंग: इसकी विधियां (मेथड्स ऑफ टाइम कीपिंग): मेनुअल एंड मैकेनिकल
• अच्छी समय के हिसाब की विधि की विशेषता
• टाइम बुकिंग: टाइम बुकिंग की विधियां
• कार्य हीन समय (आइडल टाइम): इसके कारण
• पारिश्रमिक यानी वेतन या मजदूरी की गणना करने की विधियां
¶ टाइम कीपिंग
किसी भी कार्यशाला जैसे कारखाना, फैक्ट्री, कार्यालय इत्यादि में मजदूरों या कर्मचारियों के आने-जाने का समय, कार्य में बिताया गया समय, कार्यहीन समय
(idle time) , अतिरिक्त काम करने का समय (
ओवरटाइम), इत्यादि का लिखित हिसाब रखना टाइम कीपिंग कहा जा सकता है.
टाइम कीपिंग का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों के वेतन की गणना और श्रम लागत और श्रमिकों का सुचारु प्रशासन करना है.
• टाइम कीपिंग की विधियां
कर्मचारियों के कार्य पर आने और कार्य से जाने के समय का लिखित हिसाब रखना अर्थात टाइम कीपिंग को दो तरह से की जा सकती हैं. पहला मानवीय तरीके से यानी
manually और दूसरा यांत्रिक तरीके से अर्थात
mechanically. दोनों ही विधियां फर्म का स्थान, कर्मचारियों की संख्या और प्रवृति, उत्पादित वस्तुओं की प्रकृति, उत्पादन में व्यवहार होने वाले संपदाओं की प्रवृत्ति, भ्रष्टाचार की संभावनाएं, इत्यादि जैसे कारकों पर निर्भर करती हैं.
मानवीय विधियां (manual methods)
I. हस्त-अंकन (hand recording)
इस विधि में एक उपस्थिति पंजिका यानी अटेंडेंस रजिस्टर का उपयोग किया जाता है. इसमें सभी कर्मचारियों का नाम लिखा रहता है और उनके नाम के सामने महीने के प्रत्येक तारीख के लिए एक स्तंभ यानी कॉलम बना होता है. जिसमें वह प्रतिदिन अपने काम पर आने और काम से जाने का समय दर्ज करते हैं और हस्ताक्षर करते हैं. निरक्षर कर्मचारी के लिए कोई अधिकारी उनकी उपस्थिति दर्ज करते हैं. देर से आने और पहले जाने का समय और अनुपस्थिति को भी इसी पंजिका में लिखा जाता है.
यह विधि बहुत ही सरल और समझने में आसान है. आज भी कई सभ्य देशों में भी इसका उपयोग हो रहा है. यद्यपि इसमें कर्मचारी अपनी उपस्थिति इत्यादि खुद लिखते हैं, यह गलत भी हो सकता है. इसलिए किसी विशेष अधिकारी को इस पर निगरानी रखनी पड़ सकती है. अनपढ़ कर्मचारियों के लिए भी यह विधि उपयुक्त नहीं है.
II. डिस्क/टोकन/चेक अंकन (disc/token/check रिकॉर्डिंग)
इस विधि के अनुसार कर्मचारियों को एक धातु डिस्क दिया जाता है जिनपर प्रत्येक कर्मचारियों का पहचान संख्या अंकित रहता है. कार्यशाला के द्वार पर दो फलक
(board) होते हैं. एक अंदर फलक (इन-बोर्ड) दूसरा बाहर फलक (आउट-बोर्ड). सभी कर्मचारियों का डिस्क या टोकन वाह्य-फलक पर उनके विशेष अंकित खूंटी पर टंगी रहती है. जब कोई कर्मचारी कार्यशाला में प्रवेश करते हैं, तो बाहरी-फलक से अपना टोकन उठाकर अंतरफलक में अपने खूंटी पर टांग देते हैं. प्रवेश करने की सामान्य समय के बाद अंतरफलक को हटा दिया जाता है. जिससे देर से आने वाले कर्मचारी अपने टोकन को एक अन्य संदूक या टोकरी में रखते हैं.
उपस्थिति दर्ज करने के लिए जिम्मेदार कर्मचारी अंतरफलक पर टंगे टोकन के आधार पर उपस्थिति दर्ज करता है और देर से आने वाले कर्मचारियों की उचित उपस्थिति दर्ज करता है. जीन कर्मचारियों का टोकन वाह्य-फलक पर टंगा होता है उन्हें अनुपस्थित माना जाता है. इन्हीं अभिलेखों के अनुसार कर्मचारियों का वेतन निर्धारित होता है.
इसी प्रकार कर्मचारी कार्यशाला से बाहर निकलते समय अंतरफलक से अपने टोकन को उठाकर बाहरी फलक मे डाल देते हैं.
• विधि से लाभ (advantages)
1. यह विधि बहुत सरल है.
2. इस विधि को समझना आसान है.
3. इस विधि का उपयोग निरक्षर कर्मचारी भी आसानी से कर सकते हैं.
4. इस विधि में समय भी बहुत कम लगता है.
• इस विधि की कमियां (limitations)
1. कोई कर्मचारी किसी अन्य कर्मचारी का टोकन भी उठा कर अंतरफलक पर टांग सकता है जिससे अनुपस्थित कर्मचारी की भी उपस्थिति दर्ज हो जाएगी.
2. सामान्य अवस्थाओं में यह विधि उपयुक्त है. लेकिन देर से आने और पहले जाने, अतिरिक्त समय तक काम करने, इत्यादि की गणना करने के लिए अलग-अलग पंजी यानी रजिस्टर बनाना पड़ेगा. जोकि बहुत अधिक समय लेगा और खर्च बढ़ाएगा.
3. टोकन को देखकर उपस्थिति और अनुपस्थिति दर्ज करते समय गलती होने की संभावना रहती है.
यांत्रिक विधियां (मेकेनिकल मेथड्स)
I. समय घड़ी विधि (टाइम क्लॉक मेथड)
इस विधि में प्रत्येक कर्मचारी को एक समय पत्र (टाइम कार्ड) दिया जाता है; जिसमें उसका नाम, संख्या व्यापार, श्रेणी, घंटा दर, विभाग का नाम, इत्यादि लिखा रहता है. यह सामान्यतः 1 सप्ताह के लिए जारी किया जाता है. इस समय पत्रों को एक विशेष प्रकार के घड़ी के विशेष हिस्से
(slot) में डाला जाता है, और एक बटन दबाया जाता है. जिससे कर्मचारी के उपस्थिति का समय और तारीख उस पत्र पर दर्ज हो जाता है. और कर्मचारी अपने समय पत्र को आंतरिक टोकरी (
in-rack) में डाल देता है. और बाहर निकलते समय इसी क्रिया को फिर से दोहराता है. जिससे उसके बाहर निकलने का समय उसके समय पत्र पर अंकित हो जाता है. और इसके पश्चात् वह इस टाइम कार्ड यानी समय पत्र को बाहरी टोकरी (आउट रैक) में रख देता है.
इस प्रकार कर्मचारी के कार्य पर आने, कार्य से जाने, देर से आने, पहले जाने, अतिरिक्त समय तक काम करने, अनुपस्थित रहने इत्यादि का अभिलेख आसानी से सप्ताह के अंत में किया जा सकता है. और इसी के आधार पर उसका वेतन निर्धारित होता है.
इस विधि के लाभ (advantages)
1. यह विधि किफायती है.
2. समय पत्र यानी टाइम कार्ड का उपयोग वेतन या मजदूरी के निर्धारण में किया जा सकता है. टाइम कार्ड पर अंकित समय विश्वसनीय होता है. क्योंकि कर्मचारी इस से छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं.
3. उपस्थिति इत्यादि में किसी तरह की धोखाधड़ी की संभावनाएं न्यूनतम हो जाती है.
• इस विधि की कमियां (limitations)
1. इस विधि में प्रारंभ में बहुत अधिक खर्च का भार उठाना पड़ता है. जो छोटे संस्थाओं के लिए संभव नहीं भी हो सकता है.
2. एक ही कर्मचारी अन्य कर्मचारियों का टाइम कार्ड भी व्यवहार कर सकता है, जिससे अनुपस्थित कर्मचारियों की उपस्थिति भी दर्ज हो जाएगी.
II. डायल अंकन विधि (डायल रिकॉर्डिंग मेथड)
इस विधि में हर कर्मचारी को एक विशिष्ट टिकट दी जाती है जो उसकी पहचान को सुनिश्चित करता है. इसमें एक डायल वाली घड़ी होती है जिसमें कई छेद होते हैं. प्रत्येक कर्मचारी अपने टिकट को उसके लिए निर्धारित छेद में डालते हैं, और डायल के भुजा को दबाते हैं. जिससे डायल के अंदर कागज का जो रोल होता है. उसमें उसके टिकट नंबर के साथ उसके आने का समय दर्ज हो जाता है. समान प्रक्रिया बाहर जाने के समय की जाती है. जिससे जाने का समय भी दर्ज हो जाता है.
• इस विधि से लाभ (advantages)
1. यह विधि बहुत ही किफायती है.
2. इससे प्राप्त अभिलेख यानी समय का हिसाब विश्वसनीय होता है.
3. इसमें धोखाधड़ी की संभावनाएं न्यूनतम होती है.
• इस विधि की कमियां (limitations)
1. प्रारंभिक खर्च बहुत अधिक होता है.
2. कोई एक कर्मचारी अन्य कर्मचारियों की उपस्थिति भी दर्ज कर सकता है.
3. कर्मचारी के देर से आने और पहले जाने, अतिरिक्त काम करने, अनुपस्थित होने, इत्यादि का हिसाब अलग-अलग करना कठिन हो सकता है.
4. यह विधि बहुत अधिक समय भी लेता है, क्योंकि डायल में छेद की संख्या सीमित होती है.
¶ समय का हिसाब रखने की अच्छी विधि की विशेषताएं (फीचर्स ऑफ अ गुड टाइम कीपिंग सिस्टम)
समय के हिसाब रखने की कारगर और दक्ष विधि की निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं...
1. टाइम कीपिंग की विधि ऐसी हो जिसमे कोई भी कर्मचारी किसी अन्य कर्मचारी की उपस्थिति इत्यादि दर्ज ना कर पाए. 2. विधि का सरल होना आवश्यक है, ताकि विभिन्न प्रकार के कर्मचारी जो निरक्षर भी हो सकते हैं इसे आसानी से समझ सकें और उसका व्यवहार कर सकें.
3. विधि बहुत अधिक खर्चीला नहीं होना चाहिए, क्योंकि छोटी संस्थाओं के लिए महंगी विधियों का व्यवहार आसान नहीं हो सकते हैं.
4. टाइम कीपिंग की विधि ऐसी देनी चाहिए जिसमें देर से आने, बाद में जाने ओवरटाइम करने, अनुपस्थित रहने, इत्यादि का वस्तुनिष्ट (
objective) और विश्वसनीय हिसाब स्वत: ही बहुत कम मेहनत से ही आसानी से प्राप्त हो जाए.
5. टाइम कीपिंग की विधि ऐसी होनी चाहिए जिसे कई कर्मचारी एक ही समय आसानी से व्यवहार कर सके. अगर कर्मचारियों को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने इत्यादि के लिए बहुत अधिक समय खर्च करना पड़े, तो इससे कार्यहीन समय में वृद्धि होगी.
¶ टाइम बुकिंग
कर्मचारियों के कार्य पर आने और काम से जाने के समय को दर्ज करने के अलावा कर्मचारी ने किस कार्य में प्रत्यक्ष रुप से अपना समय बिताया है या काम किया है इसकी भी गणना करना आवश्यक है. ताकि उसके द्वारा बिताए गए समय के लिए उसे जो मजदूरी दी जाती है उसे उस वस्तु, सेवा प्रक्रिया (प्रोसेस) के कुल लागत निर्धारण में शामिल किया जा सके. इसी प्रकार अगर कोई कर्मचारी अप्रत्यक्ष कार्यों में लिप्त है, तो भिन्न-भिन्न प्रकार के अप्रत्यक्ष कार्यों में बिताया गया समय भी उचित रूप से दर्ज करना आवश्यक है. ताकि इस समय के लिए उस कर्मचारी द्वारा प्राप्त वेतन को अप्रत्यक्ष लागत यानी ओवरहेड के रूप में विभिन्न वस्तु, सेवाओं या प्रक्रियाओं में आवंटित (
allocate) की जा सके.
इस प्रकार किसी कर्मचारी द्वारा कार्यशाला में बिताए गए समय को की विभिन्न वस्तुओं सेवाओं या उत्पादन प्रक्रियाओं के साथ चिन्हित करना ही टाइम बुकिंग कहलाता है.
• कारगर और दक्ष टाइम बुकिंग विधि की विशेषताएं
1. जिस पंजी (
रजिस्टर) या पृष्ठ (
sheet) पर टाइम बुकिंग की जाती है उसमें गलती नहीं होनी चाहिए.
2. कार्यहीन समय (
idle time) को उत्पादक समय (
productive time) के साथ नहीं दिखाना चाहिए. कार्यहीन समय को किसी भी वस्तु, सेवा या उत्पादन प्रक्रियाओं के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. इसका हिसाब एक अलग पंजी या पृष्ठ पर करना चाहिए.
3. टाइम बुकिंग की जाने वाली पंजी या पृष्ठ को अच्छी तरह से सुरक्षित रखना आवश्यक है, ताकि इसमें फेर बदल ना की जा सके और यह ना खोए.
• टाइम बुकिंग के लिए व्यवहार में लाए जाने वाले प्रपत्र और अभिलेख (फॉर्म्स एंड रिकार्ड्स यूज्ड फॉर टाइम बुकिंग)
टाइम बुकिंग के लिए निम्नलिखित प्रपत्र
(form) और अभिलेख
(record) का उपयोग किया जाता है.
1. दैनिक समय पृष्ठ (डेली टाइम शीट)
इस विधि में कर्मचारी को एक दैनिक समय पृष्ठ (
daily time sheet) दिया जाता है. जिसमें कर्मचारी प्रत्येक प्रकार के काम में बिताए गए समय को लिखता रहता है. वास्तव में जब किसी कार्य को शुरु करता है तो इसका समय टाइम शीट में लिख देता है और जैसे ही वह कार्य समाप्त होता है या कर्मचारी उस काम को करना बंद कर देता है, तो इसका भी समय टाइम शीट में लिख देता है. इसी प्रकार जब वह कार्य को फिर से शुरू करता है, तो उसका समय भी फिर से लिखता है. और जब कार्य पूरी तरह समाप्त हो जाता है, तो उसका भी समय लिखता है. और जब कोई दूसरा कार्य प्रारंभ करता है, तो उसका समय भी ऊपर बताए गए विधि के अनुसार टाइम शीट में लिखता रहता है. इस प्रकार उसके द्वारा बिताए गया कुल समय और उसके द्वारा बिताया गया उत्पादक समय के अंतर को ज्ञात करने पर कार्यहीन समय भी आसानी से पता चल जाता है. और उसके वेतन को विभिन्न प्रकार के वस्तुओं, सेवाओं और उत्पादन प्रक्रियाओं में आसानी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष श्रम लागत में भाग करके आवंटित किया जा सकता है.
2. सप्ताहिक समय पृष्ठ (वीकली टाइम शीट)
सप्ताहिक समय पृष्ठ दैनिक समय पृष्ठ की तरह ही होता है. लेकिन यह पूरे 1 सप्ताह के लिए जारी किया जाता है. कर्मचारी प्रतिदिन अपने कार्य आरंभ और समाप्त होने का समय इस पृष्ठ पर दर्ज करता रहता है. और सप्ताह के खत्म होने पर इसे उचित अधिकारी के पास जमा कर देता है. जिससे उसके वेतन का निर्धारण और श्रम लागत को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भाग में बांट कर उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं, सेवाओं या उत्पादन विधियों में उचित दर से आवंटित किया जाता है.
3. जॉब टिकट या जॉब कार्ड
प्रत्येक प्रकार के प्रक्रिया या जॉब के लिए सभी को एक जॉब टिकट या जॉब कार्ड दिया जाता है. जब भी एक कर्मचारी उस जॉब पर कार्य शुरु करता है, तो उसमें इसका समय लिख देता है. और जैसे ही वह कार्य समाप्त होता है, तो उसका समय भी दर्ज लिख देता है. अगर कोई कार्य बहुत अधिक समय लेने वाला हो, तो कर्मचारी अगर बीच में किसी भी प्रकार का अल्पविराम (ब्रेक) लेता है, तो उसे भी इस जॉब कार्ड में दर्ज कर देता है. कार्य समाप्त होने पर इसे उचित अधिकारी के पास जमा कर दिया जाता है. जिससे उसका वेतन निर्धारित होता है; और श्रम लागत को उचित रूप से वर्गीकृत (
classify) और आवंटित (
allocate) किया जाता है.
4. टाइम-कम-जॉब कार्ड
केवल जॉब कार्ड के जरिए कार्यकारी समय और कार्य हीन समय का तुलनात्मक अध्ययन करना और उनका सत्यापन करना आसान नहीं हो पाएगा. इसलिए जॉब कार्ड के साथ टाइम शीट का भी उपयोग किया जाता है. जिससे विभिन्न कार्यों पर बिताए गए कार्यकारी समय कर्मचारी द्वारा बिताए गए कुल समय और कार्य हीन समय का निर्धारण और तुलनात्मक अध्ययन और सत्यापन किया जा सके.
¶ कार्यहीन समय (आइडल टाइम)
किसी भी श्रमिक द्वारा किसी कार्यशाला में एक निर्धारित समय बिताना आवश्यक होता है. लेकिन समय के हिसाब को देखकर यह पता चलता है, कि कर्मचारी द्वारा वास्तविक रुप से कार्य में बिताया गया समय उसके उपस्थिति के कुल समय से कम है. अर्थात कुछ समय तक श्रमिक ने कोई भी कार्य नहीं किया होता है. इस प्रकार किसी श्रमिक द्वारा कार्यशाला में बिताया गया वह समय जिसमें किसी वस्तु, सेवा, इत्यादि का उत्पादन नहीं होता है उसे उस श्रमिक का कार्य हीन समय या आइडल टाइम कहते हैं.
श्रमिक मनुष्य होते हैं. वे कंप्यूटर या यंत्र नहीं होते. इसलिए विभिन्न प्रकार के कारणों से कोई श्रमिक कुछ समय के लिए कार्यरत नहीं भी हो सकता है. सामान्यतः सभी प्रकार की उत्पादन इकाइयों में कुछ कार्यहीन समय अवश्य होता है. ऐसे कार्यहीन समय को सामान्य कार्यहीन समय (
normal idle time) कहा जा सकता है. और कुछ विशेष दुर्घटना या परिस्थिति में किसी विशेष उत्पादन इकाई में कुछ विशेष कार्यहीन समय हो सकता है, जिन्हें असामान्य कार्यहीन समय (
abnormal idle time) कहा जा सकता है.
• सामान्य कार्यहीन समय के कारण या उदाहरण
1. फैक्ट्री के गेट से कार्यस्थल तक आने का समय.
2. एक कार्य से दूसरे कार्य में बदली का समय.
3. यंत्र को उत्पादन के लिए तैयार करने का समय.
4. प्राकृतिक आवष्यकताओं को पूरा करने का समय जैसे जलपान इत्यादि में बिताया गया समय.
5. निर्देश, कार्य सामग्री, औजार, ऊर्जा इत्यादि की कमी या विलंब, प्रतिकूल वातावरण इत्यादि.
• असामान्य कार्य हीन समय के कारण या उदाहरण
1. यंत्र का खराब होना.
2. लंबे समय तक बिजली का ना होना.
3. हड़ताल या बंदी होना.
4. प्राकृतिक आपदाओं के कारण फैक्ट्री का बंद होना.
5. फर्म के अन्य विभागों के कारण उत्पादन कार्य में रुकावट दुर्घटना इत्यादि.
¶ पारिश्रमिक गणना की विधियां (मेथड्स ऑफ रेमुनरेशन)
जिन विधियों के अनुसार श्रमिकों के वेतन या मजदूरी की गणना की जाती है उन्हें परिश्रमिक गणना की विधियां कहा जा सकता है.
• एक अच्छी पारिश्रमिक गणना विधि की विशेषताएं (features of a good wage payment method) ...
1. यह न्यायोचित, तर्कसंगत, निष्पक्ष, सरल और किफायती
(economic or cost effective) होना चाहिए.
2. पारिश्रमिक की गणना कुशलता, श्रम, समय, दक्षता, इत्यादि के आधार पर होना चाहिए; जिससे समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक सुनिश्चित हो सके.
3. यह विधि ऐसी होनी चाहिए जो श्रमिकों के पलायन (
employee turnover), अनुपस्थिति (
absentism), देर से आने (late arrival), और कार्य हीन समय
(idle time) को न्यूनतम कर सके.
4. यह विधि ऐसी होनी चाहिए जो कुल पारिश्रमिक को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागों में आसानी से बांट सके; और अप्रत्यक्ष पारिश्रमिक को विभिन्न कार्यों में तर्कसंगत तरीके से आवंटित कर सके.
5. यह लोचशील (
flexible) होना चाहिए ताकि इसमें आवश्यकता, परिस्थिति और समय के अनुसार आवश्यक और उचित परिवर्तन की जा सके.
6. इसके कोई भी प्रावधान गैर कानूनी ना हो.
¶ कुछ विशेष विधियों की चर्चा निम्नलिखित हैं ...
I. समय दर व्यवस्था (टाइम रेट सिस्टम)
इस व्यवस्था में श्रमिक को वेतन या मजदूरी उसके द्वारा बिताए गए कार्यरत समय पर एक पूर्व निर्धारित समय मजदूरी दर के हिसाब से दी जाती है. उदाहरण के लिए अगर कोई श्रमिक किसी दिन 8 घंटे काम करता है और उसका समय वेतन दर दो रुपए प्रति घंटा हो, तो उसे उस दिन की मजदूरी 16 रूपय (=₹2 X 8) मिलेगी. इसी प्रकार किसी सप्ताह या महीने में बिताए गए कुल कार्यरत समय और समय मजदूरी दर की जानकारी होने पर किसी भी श्रमिक का वेतन आसानी से ज्ञात किया जा सकता है.
समय मजदूरी दर का निर्धारण उद्योग और फर्म में क्रमशः श्रमिकों के वेतन से जुड़े क्रॉस सेक्शन और टाइम सीरीज आंकड़ों के अनुसार एक मानक दर (
स्टैंडर्ड रेट) के रुप में की जाती है. इस दर को फर्म और कार्य की विशिष्टता के अनुसार समायोजित भी किया जा सकता है.
यह व्यवस्था निम्नलिखित परिस्थितियों में उपयुक्त हो सकती है...
1. अत्यंत कुशल कर्मचारियों के लिए
2. अत्यंत अकुशल कर्मचारियों और प्रशिक्षितों के लिए.
3. जब कर्मचारी अपने कार्य के लिए दूसरों पर आश्रित हो.
4. जब कोई कार्य इससे पहले किए गए कार्यों पर निर्भर हो . 5. जब उत्पादन की इकाइयां समान गुण वाली ना होने के कारण उनकी गिनती आसान ना हो.
6. जब व्यक्तिगत उत्पादन की गणना के लिए अत्यधिक निगरानी की आवश्यकता पड़े.
7. बहुत अधिक उत्कृष्ट और गुणवत्ता वाली सामग्री के उत्पादन के लिए.
• व्यवस्था से लाभ (advantages)
1. मजदूरी का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है.
2. श्रमिकों द्वारा अपना वेतन आसानी से जांच की जा सकती है. क्योंकि उन्हें अपने कार्य करने का समय पता होता है और उन्हें अपना वेतन दर भी पता होता है.
3. कर्मचारी पहले से ही निश्चित रहता है, कि उसे कितना वेतन मिलेगा.
4. अगर किसी कार्य में गुणात्मकता (
quality) अधिक महत्वपूर्ण हो, तो इस विधि का पालन करना सही होता है.
5. जब श्रमिक के द्वारा किए गए काम कर निर्धारण करना आसान नहीं होता, तब यह व्यवस्था उपयुक्त होता है.
• इस विधि की कमियां (disadvantages)
1. इस व्यवस्था में कुशल और अकुशल कर्मचारियों को समान समय के लिए समान वेतन मिलता है जो कि अनुचित है.
2. इसमें दक्षता को पुरस्कृत नहीं किया जाता.
3. इस व्यवस्था में कर्मचारी एक काम को धीरे-धीरे करके अपने द्वारा किए गए कार्यरत समय को बढ़ाकर अधिक वेतन प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं.
4. श्रमिकों की ऐसी प्रवृति पर रोकथाम के लिए अन्य कर्मचारियों को निगरानी पर रखना पड़ सकता है.
5. दक्ष कर्मचारी असंतुष्टि के कारण कार्य संस्था को छोड़ कर जा भी सकते हैं. जिससे इंप्लॉई टर्नओवर में वृद्धि होगी.
II. टुकड़ा दर व्यवस्था (पीस रेट सिस्टम)
इस व्यवस्था में मजदूरी या वेतन की गणना श्रमिक द्वारा उत्पादित इकाइयों की संख्या पर आधारित होता है. टुकड़ा दर की गणना श्रमिकों के मानक उत्पादकता (स्टैंडर्ड प्रोडक्टिविटी) के आधार पर निर्धारित की जाती है. टुकड़ा दर दो प्रकार के हो सकते हैं_ सरल टुकड़ा दर (स्ट्रेट पीस रेट) और भिन्नात्मक टुकड़ा दर (डिफरेंशियल पीस रेट).
• सरल टुकड़ा दर के अनुसार मजदूरी की गणना का सूत्र...
मजदूरी = उत्पादित वस्तुओं की इकाइयां X टुकड़ा दर प्रति इकाई. उदाहरण के लिए अगर कोई श्रमिक 1 दिन में 10 कलम बनाता है. और प्रत्येक कलम बनाने के लिए उसे अगर दो रुपए मजदूरी मिलती है. अर्थात टुकड़ा दर दो रुपय है, तो उस दिन उसकी मजदूरी 20 (=₹2X10) रूपय होगी .
वास्तव में टुकड़ा दर और समय दर में कोई मौलिक अंतर नहीं है. ऊपर के उदाहरण में अगर यह मान लिया जाए, कि मजदूर को 1 दिन में 8 घंटे काम करने पड़ते हैं, तो उसका समय दर ₹2.50 (=₹20÷8) होगा.
इस विधि से लाभ (एडवांटेजेस)
1. यह विधि समझने और व्यवहार करने में बहुत आसान है.
2. इस व्यवस्था के अंतर्गत कुशल कर्मचारी के पास अधिक आय करने का अवसर होता है.
3. इस व्यवस्था में अधिक उत्पादन करना कर्मचारियों के लिए अधिक फलदाई होता है. इसलिए कुल उत्पादन में वृद्धि होने के कारण प्रति इकाई स्थिर लागत यानी एवरेज फिक्सड कॉस्ट में कमी आती है.
4. कार्य हीन समय में कमी आती है.
5. इस व्यवस्था में किसी वस्तु सेवा या प्रक्रिया से संबंधित श्रम लागत आसानी से पहले ही पता चल जाता है.
इस विधि की कमियां (लिमिटेशन)
1. इस व्यवस्था में अधिक से अधिक उत्पादन करने की स्पर्धा होती है. इसके कारण कच्चा सामग्री इत्यादि जैसे संपदाओं का दुरुपयोग और बर्बादी हो सकती है.
2. इस व्यवस्था में अधिक उत्पादन के होड़ वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में कमी आ सकती है.
3. कुछ कर्मचारी ऐसे भी होते हैं जो कुछ दिन अधिक मजदूरी कमाकर कई दिनों तक कार्य पर नहीं आते और अनुपस्थित रहते हैं. इस प्रकार जहां ऐसे कर्मचारियों की अधिकता है वहां यह विधि कारगर नहीं होगा.
4. कुछ कर्मचारी अत्यधिक परिश्रम भी कर सकते हैं जो उनके सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा इसका प्रभाव उनकी उत्पादकता पर पड़ेगा.
5. अगर किसी दिन कोई कर्मचारी को काम की कमी के कारण कोई भी काम नहीं मिला, तो उस दिन का उसका वेतन शून्य होगा.
6. एक ही जगह पर काम करने वाले श्रमिको का वेतन अलग-अलग होने के कारण उनमें असंतोष की भावना पनप सकती है.
7. वास्तव में टुकड़ा दर का निर्धारण एक बहुत आसान प्रक्रिया नहीं है.
• भिन्नात्मक टुकड़ा दर (डिफरेंशियल पीस रेट)
इस व्यवस्था में उत्पादन के आयतन के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न मजदूरी दर निर्धारित की जाती है अर्थात उत्पादन के किस स्तर तक मजदूरी दर कब रहती है और इस स्तर से ऊपर से अधिक उत्पादन करने पर मजदूरी दर अधिक रहती है इस प्रकार दो या दो से अधिक उत्पादन के आयतन के स्तर के लिए भिन्न भिन्न मजदूरी दर के अनुसार एक मजदूर का की मजदूरी निर्धारित की जा सकती है सामान्यता सामान्य सामान्यतया यह व्यवस्था बिस्तर पर आधारित है कि जब श्रमिक उत्पादन के स्तर पर जाकर थकने लगेंगे तो उन्हें और अधिक दर से मजदूरी देकर और अधिक परिश्रम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा उदाहरण के लिए अगर कोई श्रमिक किसी वस्तु के 100 इकाई का उत्पादन करता है, तो उसे प्रतीक आई दो रुपए की दर से मजदूरी मिलती है और अगर वह सबसे अधिक इकाइयों का उत्पादन करता है तो इस प्रकार अतिरिक्त उत्पादन इकाइयों पर उसे 2 रुपए 10 पैसे या तीन रुपए की दर से मजदूरी दी जा सकती है. अगर सुनील ने डेढ़ सौ कलम बनाए, तो उपरोक्त उदाहरण के अनुसार उसकी मजदूरी ₹305 (=100X₹2+50X₹2.10) होगी.
इस व्यवस्था के दो विशेष उदाहरण निम्नलिखित हैं...
• टेलर का भिन्नात्मक टुकड़ा व्यवस्था (ट्रेलर्स डिफरेंशियल पीस रेट सिस्टम)
इस व्यवस्था के अनुसार मजदूरी निर्धारण के दो भिन्न दर होते हैं. एक दर टुकड़ा दर का 83 प्रतिशत होता है और दूसरा टुकड़ा दर का 120% होता है. पहला दर उनके लिए लागू होता है जो मानक उत्पादन के स्तर तक नहीं पहुंच पाते और दूसरा दर यानी 120 प्रतिशत उनके लिए है जो मानक उत्पादन स्तर या उससे अधिक उत्पादन कर पाते हैं. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इस व्यवस्था में मानक उत्पादन स्तर या मानक उत्पादन समय का पूर्व निर्धारण करना आवश्यक है.
श्रमिकों की दक्षता निम्नलिखित सूत्रों से ज्ञात की जा सकती है ...
दक्षता = (मानक समय ÷ वास्तविक कार्यकारी समय) X 100%
इसी प्रकार उत्पादकता के आधार पर भी दक्षता की माप निम्नलिखित सूत्र से की जा सकती है...
दक्षता = (वास्तविक उत्पादन ÷ मानक उत्पादन) X 100%
यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक श्रमिक कम से कम मानक उत्पादन स्तर तक पहुंचने का अवश्य प्रयास करें. इस प्रकार कार्यहीन समय न्यूनतम हो जाता है. और कर्मचारियों द्वारा कामचोरी करने की प्रवृत्ति में कमी आती है. लेकिन अगर दक्षता में कमी के अलावा किसी और कारण से कोई कर्मचारी किसी दिन मानक उत्पादन स्तर तक नहीं पहुंच पाता है, तो उसे बहुत अधिक आर्थिक नुकसान होता है. क्योंकि पहला दर बहुत कम है.
• मेरिक का भिन्नात्मक टुकड़ा दर व्यवस्था (मेरिक्स डिफरेंशियल पीस रेट सिस्टम)
मजदूरी निर्धारण कि यह व्यवस्था उपरोक्त टेलर की व्यवस्था का मामूली रूपांतरण है. इस व्यवस्था में जो श्रमिक मानक उत्पादन स्तर तक नहीं पहुंच पाते उन्हें आर्थिक रूप से दंडित नहीं किया जाता. अर्थात उन्हें सामान्य टुकड़ा दर से ही मजदूरी दी जाती है. लेकिन जो श्रमिक मानक उत्पादन स्तर तक पहुंच पाते हैं उन्हें सामान्य दर से थोड़ा अधिक और जो मानक उत्पादन स्तर से अधिक उत्पादन कर पाते हैं उन्हें थोड़ा और अधिक टुकड़ा दर से मजदूरी दी जाती है. इस प्रकार जो कर्मचारी दक्ष नहीं भी हैं उन्हें भी अपने मेहनत के अनुसार सामान्य दर से मजदूरी प्राप्त हो जाती है. और जो श्रमिक कुशल है और मेहनती है, अपनी मेहनत और दक्षता से अधिक वेतन या मजदूरी कमा सकते हैं. विशेष रुप से इस व्यवस्था में 3 भिन्न-भिन्न मजदूरी दर है_ 83⅓% दक्षता तक सामान्य टुकड़ा दर से; 83⅓% से लेकर 100% दक्षता तक 110% सामान्य टुकड़ा दर से; और 100% से अधिक दक्षता पर उत्पादन के लिए सामान्य टुकड़ा दर का 120% की दर से वेतन दिया जाता है.
इस व्यवस्था को विविध टुकड़ा दर व्यवस्था यानी मल्टीपल पीस रेट सिस्टम भी कहा जाता है.
¶ प्रीमियम बोनस योजनाएं
बोनस योजना का उद्देश्य दक्ष कर्मचारियों को उनकी दक्षता के लिए आर्थिक रूप से पुरस्कृत करना अर्थात सामान्य वेतन से अधिक मजदूरी देना. ताकि वे और अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित होते रहें. योजनाओं में दक्ष कर्मचारियों द्वारा समय में जो बचत की जाती है उसके लिए भी उन्हें एक पूर्व निर्धारित वेतन दर से अतिरिक्त मजदूरी प्रदान की जाती है. जिसे बोनस कहा जाता है. इस प्रकार बोनस की गणना के लिए यह आवश्यक होता है कि किसी भी कार्य या उत्पादन के लिए मानक समय या मानक उत्पादन स्तर का पूर्व निर्धारण कर लिया जाए. उपरोक्त चर्चाओं में यह उल्लेख किया गया है कि कोई भी मानक का निर्धारण समय और गति अध्ययन (टाइम एंड मोशन स्टडी) के अनुसार की जाती है.
ऐसी दो मुख्य योजनाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है...
• हेलसी योजना (Halsey scheme)
इस योजना की प्रमुख विशेषताएं या मान्यताएं निम्नलिखित हैं ...
1. इसमें समय दर पूर्व निर्धारित होता है. और यह श्रमिकों को किसी भी अवस्था में दिया जाता है.
2. प्रत्येक कार्य या प्रक्रिया के लिए मानक समय या मानक उत्पादन आयतन का निर्धारण किया जाता है.
3. अगर कोई श्रमिक मानक समय से कम में अपना कार्य पूरा कर लेता है, तो बचाए गए समय के 50% पर उसे टुकड़ा दर से बोनस दिया जाता है. इस प्रकार नियोक्ता यानी मालिक को बचाए गए समय के 50% का लाभ मिलता है.
उदाहरण के लिए अगर किसी कार्य को करने के लिए मानक समय (time allowed) 40 घंटे हैं और अगर कोई श्रमिक इस कार्य को 30 घंटे (time taken) में पूरा कर लेता है, तो उसके द्वारा बचाया गया समय (time saved) 10 घंटे होता है. इस अवस्था में 30 घंटों के लिए उसे सामान्य दर से मजदूरी मिलेगी और 10 घंटे का आधा यानी 50% अर्थात 5 घंटे के लिए उसे सामान्य मजदूरी दर से बोनस दिया जाएगा. अगर ऐसे श्रमिक का मजदूरी दर 5 रुपए प्रति घंटा हो, तो उसका सामान्य मजदूरी 150 रुपए (=₹5 X 30) और बोनस 25 (=₹5 X ½ X 10) रुपए होगा. यानी उसका कुल मजदूरी 175 रुपय होगी.
इस योजना का लाभ (एडवांटेजेस)
1. यह बोनस योजना समझने में और व्यवहार करने में बहुत ही सरल है.
2. अकुशल कर्मचारियों को इस योजना के कारण कोई आर्थिक नुकसान नहीं होता. क्योंकि उनका मौलिक मजदूरी दर निश्चित होता है. लेकिन कुशल कर्मचारियों के पास अधिक बोनस अर्जित करने का विकल्प होता है.
3. इस योजना के कारण कर्मचारियों की कार्य कुशलता में वृद्धि होती है. जिससे फर्म (व्यवसायिक संस्था) को आर्थिक लाभ मिलता है. क्योंकि उत्पादकता में वृद्धि होती है और कार्यहीन समय में कमी आती है.
4. कर्मचारियों द्वारा बचाई गई समय का लाभ कर्मचारियों और मालिकों को बराबर-बराबर मिलता है.
इस योजना की कमियां (लिमिटेशंस)
1. इस विधि में योजना में कर्मचारी ज्यादा बोनस अर्जित करने के लिए अधिक से अधिक समय बचाने का प्रयास कर सकते हैं जिससे उत्पादित वस्तुओं सेवाओं या उत्पादन प्रक्रिया की गुणवत्ता में कमी आ सकती है.
2. इसी प्रकार कार्य को जल्दी-जल्दी समाप्त करने की हड़बड़ी में दुर्घटना भी हो सकती है. जिससे श्रमिक या फर्म को कई प्रकार के नुकसान हो सकते हैं.
3. कुछ कर्मचारी संगठनों को यह भ्रांति होती है कि कर्मचारी द्वारा बचाई गई समय का लाभ कंपनी को नहीं मिलना चाहिए. जिससे विवाद और असंतोष की भावना जन्म लेती है.
4. अन्य बोनस योजनाओं की अपेक्षा इस योजना में बोनस दर कम है.
• रोवन योजना (Rowan scheme)
बोनस की इस योजना की कुछ मुख्य विशेषताएं निन्नलिखित हैं...
1. इसमें समय दर निश्चित होता है. अर्थात श्रमिक को निश्चित दर से किए गए कार्य पर मजदूरी मिलता है.
2. इसमें बचाए गए समय के एक भाग पर बोनस दिया जाता है.
3. अन्य योजनाओं की तरह इसमें बोनस का दर पूर्व निर्धारित नहीं होता. बल्कि मानक समय का जितना प्रतिशत समय बचाया जाता है उसी अनुपात में कार्यरत समय पर सामान्य मजदूरी दर से बोनस की गणना की जाती है.
4. इस योजना में भी मालिकों को बचाए गए समय के एक भाग का लाभ मिलता है.
उपरोक्त उदाहरण के अनुसार सामान्य मजदूरी 150 रुपए (=30 X ₹5) होगा. लेकिन बोनस ₹37.50 (=10/40 X 30 X ₹5) होगा.
इस प्रकार बोनस का सूत्र...
बोनस= (बचाया गया समय ÷ मानक समय) X कार्यरत समय X समय मजदूरी दर.
Bonus = Time saved (TS) / Time allowed (TA) X Time taken (TT) X Time rate.
इस योजना के लाभ (advantages)
1. इस योजना में बचाए गए समय पर किसी पूर्व निर्धारित (जैसे 50% इत्यादि) दर से बोनस नहीं दिया जाता. बल्कि मानक समय का जितना भाग बचाया गया है उसी अनुपात पर कर्मचारी को बोनस दिया जाता है. अर्थात या योजना अधिक तर्कसंगत है.
2. इस योजना के अनुसार 50% से अधिक समय बचाने पर बोनस में वृद्धि की दर क्रमशः घटने लगती है. इस प्रकार कर्मचारियों द्वारा कार्य को बहुत अधिक जल्दी समाप्त करने की भी एक सीमा तय हो जाती है. जिससे उत्पादन की गुणवत्ता बनी रहती है.
3. इस योजना के अनुसार कुशल कर्मचारियों को पुरस्कार स्वरूप उनकी दक्षता के अनुरूप बोनस दिया जाता है.
4. इस योजना में भी बचाए गए समय के एक भाग का लाभ मालिकों को मिलता है.
इस योजना की कमियां (limitations)
1. इस योजना में भी ऐसी भ्रांति (doubt) होती है कि बचाए गए समय का लाभ मालिकों को भी मिलता है. जिससे विवाद और असंतोष की भावना जन्म लेती है.
2. किसी भी अवस्था में बोनस का समय मानक समय के 25% से अधिक नहीं हो पाता.
3. कर्मचारियों द्वारा बचाई गई समय केवल उनकी कार्यकुशलता पर ही निर्भर नहीं करता. कई अन्य कारक जैसे यंत्रों की विशेषता, कच्ची सामग्री की गुणवत्ता, इत्यादि पर भी यह निर्भर करता है. इस प्रकार अन्य कारकों के कारण भी कर्मचारी का बोनस प्रभावित होता है.
• हेलसी और रोवन योजनाओं का तुलनात्मक अध्ययन
दोनों योजनाओं की समानताएं...
1. दोनों ही योजनाओं में समय मजदूरी दर निश्चित होती है.
2. दोनों ही योजनाओं में कार्य या प्रक्रिया को समाप्त करने का मानक समय पूर्व निर्धारित रहता है.
3. बोनस की धनराशि बचाए गए समय पर निर्भर करती है.
4. कर्मचारी और मालिक दोनों ही बचाए गए समय का लाभ प्राप्त करते हैं.
5. दोनों ही योजनाओं में उत्पादकता जितनी ही बढ़ेगी प्रति इकाई स्थित लागत क्रमशः घटती जाएगी.
6. अगर मानक समय का आधा समय बचा लिया जाए, तो दोनों ही योजनाओं के अनुसार बोनस की धनराशि समान होगी.
दोनों योजनाओं में असमानता
1. बचाया गया समय मानक समय के आधा से कम हो, तो हेलसी योजना के अपेक्षा रोवन योजना के अनुसार अधिक बोनस मिलेगा.
2. हेलसी योजना में बचाए गए समय के आधा पर बोनस मिलता है. लेकिन रोवन योजना में बचाए गए समय और मानक समय के अनुपात के अनुसार बोनस मिलता है.
3. हेलसी स्कीम में अगर अधिक समय बचाया गया, तो बोनस भी अधिक होगा. लेकिन रोवन योजना में ऐसा नहीं होता है. अगर मानक समय के आधा से ज्यादा समय बचाया गया तो बोनस घटने लगेगा.