Wednesday, 6 June 2018

लर्निंग इंग्लिश: एक कहानी

 वसीम का जन्म एक झोपड़पट्टी में हुआ था। उनके माता-पिता लगभग अशिक्षित थे, लेकिन उनके पिता आश्चर्यजनक रूप से बंगाली और अंग्रेजी पढ़ सकते थे; और बोली जाने वाली अंग्रेजी भी समझ सकते थे। वसीम को यह तब  पता चली जब उसने अपने पिता से संसद में अविश्वास- प्रस्ताव के दौरान देश के प्रधान मंत्री के भाषण का अर्थ पूछा। वसीम संभवतः लगभग 13 वर्ष का था जब ऐसा हुआ। उनकी मां संभवतः कभी स्कूल नहीं गई थीं, लेकिन वो ही वह महिला थींं जिन्होंने उसे हिंदी वर्णमाला सिखाई थी।

 वसीम को एक सरकारी स्कूल में भर्ती कराया गया जहां  उसने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की । यह एक हिंदी माध्यम का विद्यालय था; और शिक्षक उत्तर प्रदेशी या बिहारी थे। सभी शिक्षकों की आवाज में बहुत मजबूत मातृभाषा-प्रभाव और क्षेत्रीय-प्रभाव था। वसीम इस बात को तब समझ पाया जब वह कुछ समय के लिए एक दूसरे शहर में गया, वहां हर समय उसका मजाक उड़ाया जाता था, क्योंकि उसने  वैसे ही बोलना सीखा था जैसा उसने अपने शिक्षकों को बोलते हुए सुना था। उसका उच्चारण बहुत बुरा था। सुनना ही बोलना है। हालांकि, वसीम ने बहुत तेजी से सुधार किया, और मातृभाषा के प्रभाव, क्षेत्रीय-प्रभाव और संगी-साथियों के प्रभाव से उबर गया।

 वह एक अच्छा बच्चा था। वह न ही झगड़ालू; न ही शरारती था। वह एक प्यारा लड़का था। उसे चोरी करने या झूठ बोलने जैसी कोई बुरी आदत नहीं थी। वह पढ़ाई- लिखाई में बहुत अच्छा नहीं था और न ही बहुत बुरा था, लेकिन उस छोटे बच्चे के लिए हिंदी सीखना एक बहुत ही कठिन कार्य था। उसे इ, ई, उ, ऊ की मात्राओं  का उपयोग और निर्जीव  संज्ञाओं का  लिंग निर्धारण सीखने में कठिनाई होती थी। ऐसा इसलिए था, क्योंकि इनके उपयोग में जो अंतर था वह बहुत ही सूक्ष्म था एक बच्चे के लिए। इसके अलावा, चूंकि उसका विद्यालय एक हिंदी माध्यम का विद्यालय था, इसलिए पांचवी कक्षा तक अंग्रेजी पढ़ाया नहीं जाता था। लेकिन उसने हिंदी के बजाय अंग्रेजी सीखने का फैसला किया; क्योंकि अंग्रेजी भाषा में  मात्रा और लिंग  की समस्या नहीं थी।

 एक बार जब वह अपने मामा के घर गया और अपने ममेरे भाई से उसे अंग्रेजी सिखाने का अनुरोध किया। वसीम लगभग 10 साल का था; और उसका ममेरा भाई उससे 1 साल बड़ा था। उसके ममेरे भाई ने उसे सिखाने की कोशिश की, लेकिन वासीम संतुष्ट नहीं था। उसने अंग्रेजी खुद सीखने का संकल्प किया।

 उसने नए शब्दों का अर्थ ढूंढना और उनके अर्थ को समझना शुरू कर दिया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में प्रकाशित एक पुस्तक की मदद से काल यानी टेंस सीखने की कोशिश की। शायद इस पुस्तक से उसे अंग्रेजी सीखने में बहुत अधिक मदद मिली। जब भी संभव हो तब उसने अंग्रेजी या हॉलीवुड की फिल्मों को देखना शुरू कर दिया। हालांकि उस समय अंग्रेजी फिल्मों को देखना बच्चों के लिए अच्छी बात नहीं माना जाता था। वसीम परिणामों का सामना करने के लिए तैयार था। इससे वसीम को बहुत हद तक अंग्रेजी समझने और सीखने में मदद मिली। माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण  करने तक वसीम  बहुत कम या बिना किसी गलती के अंग्रेजी बोलना सीख चुका था। अंग्रेजी सीखने का उसका प्रयास दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहा। उसके माध्यमिक परीक्षा के बाद दो साल के नियमित पढ़ाई के अंग्रेजी पाठ्यक्रम ने, जितना संभव हो उतना, किताबी  और गैर-किताबी शब्द सीखने का मौका दिया। उसके पास एक बहुत ही सरल नियम था: वह अपने वाक्यों में नए शब्दों का उपयोग करता। वह एक वास्तविक जीवन की एक ऐसी स्थिति की कल्पना करता जिसमें वह नए शब्दों का उपयोग कर सकता था। वह हमेशा अपने साथ एक छोटी सी शब्दकोश रखा करता था। उसने इस शब्दकोश का बहुत अधिक सदुपयोग किया। शब्दकोश व्यक्तिगत-शब्दावली में सुधार का एक अच्छा स्रोत भी था। जब तक वह लगभग 17 वर्ष का था, वह बहुत कम बिना गलती के अंग्रेजी बोल सकता था। उसने अंग्रेजी में सोचने और कल्पना करना शुरू कर दिया। उसे जब भी और जहां भी मौका मिला उसने अंग्रेजी में बात करने की कोशिश की। उसने अपने आस-पास की सभी चीजों का  अंग्रेजी नाम जानने की चेष्टा शुरू कर दी। लेकिन कुछ भी और कभी भी एक सनक नहीं बना। वह यह सोचने लगा कि बाजार में कई अन्य लोगों की तुलना में वह बेहतर अंग्रेजी जानता था। उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया। उसने किसी भी अज्ञात शब्द के अर्थ को ना जानने की भूल कभी नहीं की। हालांकि, उसने उन शब्दों को कभी भी रटने की कोशिश नहीं की। उसे नए शब्दों को भूल जाने का डर नहीं था। संभवतः, भगवान ने उसे एक अच्छी याददाश्त दी। उसने अंग्रेजी समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठों को पढ़ना शुरू कर दिया। उसने वर्षों तक ऐसा करना जारी रखा। उसने कई उपन्यास पढ़े, लेकिन किसी भी अज्ञात शब्द का अर्थ पता लगाने की कभी कोई भूल-चूक नहीं की। उसने भारत में उपलब्ध सबसे मूल और सबसे अद्भुत व्याकरण पुस्तक को पढ़कर एक बार फिर अपने व्याकरण को सुधारने की कोशिश की। वसीम ने सोचा कि सभी अन्य व्याकरण किताबें उस महान मूल व्याकरण पुस्तक की एक नकल है।

  वसीम ने विदेशी पर्यटकों के साथ बात करने की भी कोशिश की। जब भी उसे मौका मिला, उसने विदेशियों से बात की। वह ऐसा केवल इसलिए करता था ताकि वह इसकी जांच कर सके कि विदेशी उसकी बात को समझ पाते हैं या नहीं और वह विदेशियों की बात समझ पाता है या नहीं। एक बार एक विदेशी ने उससे कहा,  "आपकी अंग्रेजी बेहतर है"। वसीम इस टिप्पणी को कभी नहीं भूल पाया। एक बार वसीम एक फ्रांसीसी लड़की से बात करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसे उसके देश के नाम को समझने में बहुत तकलीफ हुई। वसीम ने सबसे पहली बार एक डेनमार्क के नागरिक से बात की थी। उसे याद है कि उसने अमेरिकियों, युगोस्लाविया, नीदरलैंड, फ्रांस, और कई अन्य देशों के  लोगों से बात की थी। यह भी उसके अंग्रेजी सीखने के प्रयासों का अभिन्न हिस्सा था।

  कॉलेज यानी महाविद्यालय में पढ़ने के दौरान उसके मित्र, शिक्षक और अन्य लोग भी उसकी अच्छी अंग्रेजी की प्रशंसा करने लगे। लेकिन वसीम कभी भी नहीं रुका। वह अभी भी सीख रहा था। एक बार उसे किसी अन्य महाविद्यालय के  प्रिंसिपल से बात करनी थी। तब उसके एक मित्र ने कहा, " तुम्हारी अंग्रेजी से तो प्रिंसिपल जी डर जाएंगे"। यह एक मजाक था।

  वसीम ने स्नातक यानी ग्रेजुएशन 20 वर्ष की आयु में पूरी की; और उसने एक नौकरी ढूंढनी शुरु की। हालांकि, वह माध्यमिक परीक्षा के बाद से ही बच्चों को उनके घरों में पढ़ाता रहा था। जब उसने पढ़ाना शुरू किया तब वह 15 साल का था। उसने अंग्रेजी माध्यम के बच्चों को भी अंग्रेजी पढ़ाई थी। कुछ कोशिशों के बाद उसे एक अमरीकी कॉल सेंटर में नौकरी मिल गई। यहां पर उसे अमरीकियों को फोन करके उनसे बातें करनी पड़ती थी। वसीम को बहुत आश्चर्य हुई कि जब वसीम दक्षिण भारतीय या मद्रासीयों की तरह बोलता था, तो अमेरिकी उसे आसानी से समझ लेते थे। लेकिन जब वह अमेरिकियों के बोलने के तरीके की नकल करता था, तो वे उसे एकदम नहीं समझ पाते थे! वहां काम करने से उसने कई प्रकार के अमेरिकी बोलचाल, कई शब्दों के उचित उच्चारण, और कई अमेरिकी नामों को जाना।

  कुछ वर्षों बाद ही उसे अपने जन्म स्थल से दूर अन्य राज्य में जाना पड़ा। वहां पर उसने लगभग 3 साल बिताएं। उसने हर स्रोत से अंग्रेजी सीखने की कोशिश की। कई बार उसके मित्र उसकी गलतियों को सुधारते; कई बार वह अच्छे लोगों की नकल करता; कई बार उसे अंग्रेजी भाषा के प्रशिक्षण में भाग लेने का भी शु-अवसर मिलता।

  जब वह 27 साल का हुआ तो उसे लंदन जाने का मौका मिला। वहां पर जितने समय भी वह रहा उसे वहां के लोगों से बातें करने में और उनकी बातों को समझने में कोई विशेष परेशानी नहीं हुई।

 कई वर्षों बाद, जब वह लगभग अपने जीवन के तीन दशक पूरे कर चुका था, उसे कुछ ऐसे लोगों से मिलने का मौका मिला जिनके पास विश्वविद्यालय की उच्च-स्नातक डिग्री थी। वह भी अंग्रेजी विषय में। वह उनके शिक्षक से भी मिला।यह कई दिनों तक चलता रहा। वसीम को पूरी तरह से यकीन था कि उनमें से कोई भी इतनी अच्छी अंग्रेजी नहीं जानता था जितना कि वसीम खुद जानता था। शायद वह सही था।

  वह बहुत कम ही ऐसे लोगों से मिला जो उससे अच्छी अंग्रेजी जानते थे। यह उसकी सोच थी। लेकिन वसीम को कभी भी अपने ज्ञान का अभिमान नहीं हुआ। उसने हमेशा अपने आप को एक सीखने वाला ही समझा।




अस्वीकरण:
 उपर्युक्त कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, और किसी भी व्यक्ति या इकाई_ मृत या जीवित के साथ कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है। किसी भी समानता को संयोग के रूप में माना जा सकता है।

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