Tuesday, 26 June 2018

सुनाम यानी गुडविल

संक्षिप्त विवरण

जब कोई व्यवसायिक प्रतिष्ठान उद्योग या बाजार के अन्य प्रतिष्ठानों की तुलना में सामान्य से अधिक दर से लाभ (super-normal profit) कमाने लगता है, तो उसके इस अत्यधिक दर से लाभ कमाने की छमता को सुनाम या गुडविल कहते हैं.

अगर कोई व्यवसायिक प्रतिष्ठान (फर्म) अपने ग्राहकों को मूल्य की तुलना में अन्य फर्मों से बेहतर वस्तु या सेवा, निष्ठावान ग्राहक सेवा (dedicated customer service), बेहतर और कारगर विक्रय पश्चात सेवा (better and effective after sales service), इत्यादि प्रदान करते हैं;  तो उन्हें ग्राहकों से सतत निष्ठा, विक्रय में वृद्धि, ग्राहकों द्वारा वस्तु या सेवा के बारे में अच्छे शब्द अर्थात मुफ्त और कारगर प्रचार, इत्यादि प्राप्त होने लगता है. जिससे उस फर्म के ब्रांड छवि (brand image) और ब्रांड मूल्य (brand value) में वृद्धि होने लगती है. इस प्रकार अत्यधिक विक्रय और बाजार में अच्छी छवि होने के कारण उनके कुल आय और कुल लाभ में बाजार के औसत आय दर से अधिक वृद्धि होने लगती है. इसी अधिक दर से लाभ कमाने की छमता को सुनाम अर्थात गुडविल कहा जा सकता है.

उपरोक्त कारणों के अलावा कर्मचारियों, ऋण दाताओं,  निवेशकों, पर्यावरण, सरकार और समाज के विभिन्न सदस्यों जिन पर किसी भी व्यवसायिक संस्था का अस्तित्व निर्भर करता हो, उनके साथ उचित आर्थिक और सामाजिक व्यवहार या लेनदेन करने से भी किसी भी फर्म के सुनाम में वृद्धि होती है.

यह एक अमूर्त (intangible) लेकिन मूल्यवान संपत्ति है. इसलिए कुछ व्यवसायिक प्रतिष्ठान इसे अपने बैलेंस शीट में दर्शाते हैं.

मेरी समझ के अनुसार सुनाम के मूल्यांकन के निम्नलिखित 2 अनुमान हो सकते हैं...

(1)
सुनाम = प्रतिष्ठान का बाजार मूल्य - (अचल संपत्तियों का विस्थापन मूल्य + चालू संपत्तियों का शुद्ध वसूली मूल्य - वाह्य देनदारियां)

टिप्पणी:

• बाजार मूल्य (market value) और बाजार पूंजीकरण (market capitalization) एक ही है.

(2)
सुनाम = फर्म का वार्षिक औसत लाभ दर ÷ जोखिम मुक्त प्रतिभूतियों पर औसत लाभ दर - शुद्ध नियोजित पूंजी

टिप्पणी

• दोनों ही औसत दर फर्म के पूरे कार्यकाल के लिए निकालना आवश्यक है.

• शुद्ध नियोजित पूंजी का मूल्यांकन सभी संपत्तियों और देनदारियों के पुनः मूल्यांकन के पश्चात् किया जाना चाहिए.

परिभाषाएं

• व्यवसाय: 
जब कोई प्रतिष्ठान भूमि, श्रम, पूंजी और संगठन के व्यवहार से मानव उपयोगी वस्तुओं या सेवा का उत्पादन या उनका क्रय-विक्रय या अन्य सेवाओं जैसे यातायात, बीमा, वित्त, संचा, विज्ञापन, इत्यादि का नियमित रूप से विनिमय  लाभ कमाने के उद्देश्य से करते हैं, तो इन क्रियाओं को व्यवसाय कहा जा सकता है. यह क्रियाएं जोखिम और अनिश्चितता भरी होती है.

• अलौकिक लाभ (सुपर नॉर्मल प्रॉफिट):
जब कोई व्यवसायिक प्रतिष्ठान उद्योग या बाजार में उपस्थित अन्य फर्मों के लाभ दर से अधिक लाभ कमाने लगते हैं, तो उनके निवेश या पूंजी पर जो प्रतिफल (return on investment/capital employed) प्राप्त होता है. उन्हें अलौकिक लाभ या सुपर नार्मल प्रॉफिट कह सकते हैं. इसका अर्थ यह है कि अगर दो प्रतिष्ठानों का नियोजित पूंजी समान हो और उनमें से एक प्रतिष्ठान दूसरे प्रतिष्ठान से अधिक दर से लाभ कमा रहा हो, तो जिस प्रतिष्ठान का लाभ अधिक है उसका लाभ दूसरे फर्म के लाभ से जितना अधिक है उसे अलौकिक लाभ कहा जा सकता है.

• जोखिम मुक्त प्रतिभूतियां (रिस्क फ्री सिक्योरिटी):
प्रतिभूतियों, जैसे शेयर, डिबेंचर, ऋण पत्र या अन्य कोई भी निवेश जिस पर कोई जोखिम नहीं है उन्हें जोखिम मुक्त प्रतिभूतियां कहा जा सकता है. उनके उदाहरण सरकार या सरकारी निकायों द्वारा जारी किए गए ऋण पत्र इत्यादि हैं जिन पर प्रतिफल या पूंजीगत कोई जोखिम नहीं है. अर्थात इनसे प्राप्त होने वाला प्रतिफल पूर्व निर्धारित और स्थिर होता है. और इसमें निवेशित धन की डूबने की आशंका नहीं होती है.

• फर्म का बाजार मूल्य (मार्केट वैल्यू ऑफ द फॉर्म):
यह वह धनराशि है जिसकी आवश्यकता किसी फर्म को एक निष्पक्ष और किसी प्रकार के प्रभाव रहित लेनदेन (आर्म्स लेंथ ट्रांजैक्शन) में खरीदने के लिए पड़ेगी.

• बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैपिटलाइजेशन): 
अगर कोई फर्म किसी शेयर बाजार यानी पूंजी बाजार में सूचीबद्ध है, तो उसके शेयर का एक सामान्य औसत मूल्य अवश्य होगा. इस मूल्य को उस प्रतिष्ठान के द्वारा जारी किए गए शेयरों की संख्या से गुणा करने पर जो राशि प्राप्त होती है, उसे उस प्रतिष्ठान का बाजार पूंजीकरण कहा जा सकता है.

• नियोजित पूंजी (कैपिटल एंप्लॉयड): 
किसी प्रतिष्ठान में अचल और चालू संपत्तियों के रूप में जो धन कार्यशील रूप से नियोजित रहता है उसे ही नियोजित पूंजी कहते हैं इसका सूत्र बहुत सामान्य है इस का मूल्यांकन करने के लिए चल और अचल संपत्तियों के योग से वाह्य देनदारियों को घटाना पड़ता है.

• अमूर्त संपत्ति (intangible asset):
यह ऐसी संपत्तियां होती हैं जिनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता है. इन्हें देखा या छुआ नहीं जा सकता. इनका भार या आयतन नहीं होता है. इन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है. जब कोई प्रतिष्ठान सामान्य से अधिक दर से लाभ कमाता है, तो सुनाम जैसी अमूर्त संपत्तियों की उपस्थिति को समझा जा सकता है. यह सबसे अधिक कठोर (rigid) यानी सबसे कम तरल (liquid) संपत्ति मानी जाती है. क्योंकि इसे बेचना या ऋण के लिए गिरवी रखना बहुत कठिन है यह काम आसानी से नहीं किया जा सकता इसलिए बैलेंस शीट में इसे अन्य सभी संपत्तियों से ऊपर दिखाया जाता है.

अगर सुनाम जैसी अमूर्त संपत्तियां किसी व्यवसायिक प्रतिष्ठान द्वारा स्वत: निर्मित की गई हो, तो यह प्रतिष्ठान इनका मूल्यांकन करके इन्हें अपने बैलेंस शीट में दर्शा सकते हैं.

लेकिन अगर इन्हें किसी भी प्रकार के प्रभावहीन और निष्पक्ष लेनदेन (आर्म्स लेंथ ट्रांजेक्शन) में खरीदा गया है, तो इन्हें इनके ऐतिहासिक मूल्यों पर ही बैलेंस शीट में दर्शाना चाहिए.

स्वत: निर्मित सुनाम को बहीखाता में दर्शाना समझदारी नहीं है. लेकिन खरीदे गए सुनाम को बहीखाता में दर्शाना आवश्यक है. लेकिन इस क्रय किए गए सुनाम के कारण लाभ में जो वृद्धि होती है, इनके द्वारा सुनाम को धीरे धीरे राइट ऑफ (write off) करना समझदारी होगी.

सोदाहरण-स्पष्टीकरण: 

I. एक प्रतिष्ठान के बारे में निम्नलिखित कल्पनाएं की गई...

बाजार मूल्य/बाजार पूंजीकरण = रु.100;
अचल संपत्तियों का विस्थापन मूल्य = ₹50;
चालू संपत्तियों का शुद्ध वसूली मूल्य = ₹30; और
बाह्य देनदारियां = ₹20.

इसलिए, सुनाम =  रु.100 - ₹(50 + 30 - 20) = ₹40.

II. एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान के बारे में निम्नलिखित कल्पनाएं की गई...

वार्षिक औसत लाभ = रु. 10;
जोखिम मुक्त प्रतिभूतियों पर वार्षिक औसत प्रतिफल दर =10% या 0.10;
शुद्ध नियोजित पूंजी = रु.60.

इसलिए, सुनाम = रु.10 ÷ 0.10 -  ₹60 = ₹100 - ₹60 = ₹40.

पाठकों से निवेदन: 

• हिंदी के कई शब्द आपको असामान्य और अजीब लग सकते हैं. आपसे निवेदन है कि आप अपने ज्ञान, इच्छा और आवश्यकतानुसार उन्हें परिवर्तित कर लें. धन्यवाद. 

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