Tuesday, 12 June 2018

श्यामलाल: एक स्कूल की कहानी

मेरा जन्म एक पतली गली में हुआ था. इस गली का नाम श्याम लाल जी लेन था। यह दो गज चौड़ा था। इस गली के एक किनारे पर नाली और दोनों किनारों पर कुछ झोपड़िया और बहुत ऊंचे ऊंचे भवन भी थे। यह दो बड़ी मुख्य सड़कों को जोड़ने का काम भी करता था। इसमें एक मोदी का दुकान, एक स्टूडियो, एक मोबाइल मरम्मत की दुकान, एक वित्तीय परामर्श देने का कार्यालय, एक चाय की दुकान के अलावा कई अन्य दुकानें भी थी। इस गली का सबसे मुख्य भवन था एक विद्यालय। इसका नाम था  जिला भाषा हाई स्कूल। इस अद्भुत विद्यालय के बिना इस गली का इतिहास और वर्तमान काफी हद तक अलग होता।

 मैं इस विद्यालय के बारे में कई बातें जानते हुए बड़ा हुआ। मेरे जैसे एक जानवर के लिए मनुष्य की प्रवृत्ति जानने का यह एक बहुत ही बड़ा साधन था।  यद्यपि इस गली में कई और भी कुत्ते थे लेकिन केवल मैंने ही इंसानों की भाषा समझने की शक्ति के साथ जन्म लिया था_ विशेषकर इस इलाके में बोली जाने वाली भाषा। मैं अपने भाइयों से बहुत अलग नहीं दिखता था। इसीलिए कोई मुझ पर विशेष ध्यान नहीं देता था। गर्मियों में मैं उसी नाली में बैठकर अपनी जान बचाया करता था। हालांकि गली का तापमान इलाके के अन्य भागों से कम था, क्योंकि इसमें सीधी धूप केवल दोपहर के समय ही आती थी। क्योंकि इस गली के दोनों और बहुत लंबी-लंबी इमारतें थी। सर्दियों में इस गली में समय बिताना बहुत मुश्किल हो जाता था। फिर भी भगवान की दया से मैंने कुछ सर्दियां बिताई। इस गली में निवास करने वाले लोगों और व्यापारियों का आचार-विचार उन्हें अपने आप में विशेष बनाता था।  कुछ गर्मियों और सर्दियों के बीतने के साथ-साथ मैंने उनमें भी एक व्यापक परिवर्तन  का अनुभव किया।

 यह अद्भुत स्कूल बहुत अधिक पुराना नहीं था। शायद इसे बीसवीं शताब्दी के मध्य में बनाया गया था। मैंने यह भी सुना है कि प्रारंभ में यह विद्यालय अपनी वर्तमान स्थिति से बहुत दूर शुरू किया गया था। इसके संस्थापकों के पास पर्याप्त धन नहीं थी। जिससे वह इस विद्यालय का पूरा निर्माण करा पाते। इसलिए उन्हें उस क्षेत्र में रहने वाले कुछ धनी और मानव-प्रेमी समाज के लोगों से दान संग्रह करना पड़ा। इस समुदाय को आज भी बहुत दानी माना जाता है। इस समुदाय ने  देशभर में अनगिनत विद्यालय, महाविद्यालय, अस्पताल, इत्यादि की स्थापना की है; और उनका परिचालन भी करते हैं। विद्यालय के संस्थापक-शिक्षक अपने वेतन से पैसे निकालकर इस विद्यालय के निर्माण और विकास पर खर्च करते थे। जैसे मेज, ईंट, इत्यादि खरीदना।

 इस अद्भुत विद्यालय में लगभग 1000 से भी अधिक छात्र पढ़ा करते थे। कई पुराने शिक्षक अवकाश प्राप्त करने के बाद विद्यालय आना बंद कर देते थे; तो कुछ नए शिक्षक और शिक्षिकाएं विद्यालय में प्रतिदिन आना-जाना प्रारंभ करते थे। विद्यालय का वर्तमान इसके इतिहास से बहुत अलग था। समय में बदलाव के साथ छात्रों और शिक्षकों के आचार-विचार और व्यवहार में परिवर्तन होता रहा। मुझे याद है कि एक बार एक अध्यापक महोदय कह रहे थे कि किसी छात्र ने कोई शरारत की थी, और इसलिए उसके अभिभावक को विद्यालय बुलाया गया था। लेकिन उस छात्र की माताजी ने विद्यालय में आकर कहा की अध्यापक जी ने वह शरारत की थी! यह स्पष्ट है कि छात्र ने अपनी माता जी को झूठ कहा था।

 पाठ्यक्रम में बदलाव होने के कारण कई प्रकार की मुश्किलों का सामना छात्रों और अध्यापकों को करना पड़ता था। नए पाठ्यक्रम के अनुसार सभी विद्यार्थियों को प्रत्येक विषय पर एक परियोजना कार्य करके उसका प्रतिवेदन लिखकर जमा करना पड़ता था। यह कोई आसान काम नहीं था! क्योंकि सभी छात्रों का परियोजना प्रतिवेदन जमा लेने में  कई महीने लग जाते थे! सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि अगर परियोजना- प्रतिवेदन में प्राप्त अंकों को सही समय और सही स्थान पर नहीं पहुंचाया गया, तो छात्रों को और अध्यापकों बहुत परेशानी का सामना करना पड़ सकता था।  कुछ छात्रों का मन पढ़ाई-लिखाई में बहुत कम ही लगता था; और इसके विपरीत कुछ छात्र ऐसे भी होते थे जो बहुत लगन और निष्ठा के साथ पढ़ाई करते थे।  मैंने सोचा मैं कि मैं कितना बुद्धिमान हूं। मैं समय-समय पर खेलता हूं, खाता हूं, आराम करता हूं, और जो भी  मुझे पसंद है वह करता हूं।

  एक बार अध्यापक जी ने छात्रों से ही पूछा की जो छात्र पढ़ाई से जी चुराते हैं उन्हें कैसे समझाया जा सकता है। इस पर कुछ छात्रों ने उन्हें दंड देने की सलाह दी; और कुछ अन्य छात्रों ने कहा कि ऐसे छात्रों के माता-पिता को विद्यालय में बुलाया जाए। लेकिन दुख की बात यह थी कि पहला विकल्प कानूनी रूप से सही नहीं था; और दूसरा विकल्प कारगर नहीं था।

कुछ अध्यापकगण इस बात से भी दुखी रहा करते थे कि उनके प्रति  कुछ लोगों का नजरिया कुछ असामान्य था। मैंने अपने छोटे जीवनकाल में यह जाना कि प्रत्येक अध्यापक अपनी क्षमता के अनुसार अपने छात्रों को पढ़ाना चाहते हैं, और उन्हें उनके जीवन में तरक्की करते हुए देखना चाहते हैं।

मेरा जीवन-चक्र मनुष्य के जीवन चक्र से बहुत छोटा है। फिर एक अद्भुत विद्यालय और इसके छात्रों और अध्यापकों के बारे में जानने के लिए यह पर्याप्त है। मुझे प्राकृतिक रूप से हाल-फिलहाल जाना ही पड़ेगा। लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरे ही जैसा कोई इस गली में इस विद्यालय को और अच्छी तरह से समझने की चेष्टा करता रहेगा।


अस्वीकरण: यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है; और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या संस्था से प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं है। किसी भी प्रकार की समानता केवल संयोग हो सकती है।

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